100 साल पहले एक व्यक्ति ने चम्पारण में अलख जगायी थी. ना हाथ में लाठी-बंदूक थी और न जुबान पर कड़ुवी बोली. एक अहिंसक सत्याग्रह ने अंग्रेजी शासन को झकझोर कर रख दिया. आज इसी आंदोलन को पूरी दुनिया चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जानती है. यह हमारी पीढ़ी के लिए गौरव की बात है कि हमें अवसर मिला है कि संसार को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले आंदोलन के हम साक्षी बन रहे हैं. शोध पत्रिका ‘समागम’ चम्पारण सत्याग्रह पर यहां-वहां बिखरी पठनीय सामग्री को दस्तावेज के रूप में अप्रेल 2017 के अंक में संग्रहित किया है. शोध एवं संदर्भ की दृष्टि से यह अंक महत्वपूर्ण है. इस अंक में वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया, कुमार प्रशांत तथा वरिष्ठ राजनेता केसी त्यागी के आलेख का प्रकाशन किया गया है. इन आलेखों में एमके गांधी से महात्मा बनने की महात्मा गांधी की सम्पूर्ण यात्रा का विवेचन किया गया है. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन की प्रकाशित हो रही पुस्तक ‘चम्पारण सत्याग्रह’ का एक अध्याय जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी के कम्युनिकेटर होने का विवेचन किया है, को प्रकाशित किया है. श्री मोहन की किताब का यह अंश जानकीपुलडॉटकॉम पर भी पढ़ा जा सकता है. इसी तरह श्री राजीव अहीर की किताब ‘आधुनिक भारत का इतिहास’ में महात्मा गांधी के विविध आंदोलनों का जायजा लिया गया है, का विस्तृत अंश प्रकाशित किया गया है. ‘चम्पारण सत्याग्रह’ के साक्षी रहे लोगों में एक रजी अहमद साहब हैं. प्रसिद्ध गांधीवादी व गांधी संग्रहालय पटना के सचिव श्री रजी साहब से दूरदर्शन केन्द्र पटना के सहायक निदेशक (समाचार) संजय कुमार की विशेष बातचीत में चम्पारण सत्याग्रह के कई बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है. शोध पत्रिका ‘समागम’ का अप्रेल 2017 के इस अंक में महात्मा के सौ साल पहले किए गए अहिंसक आंदोलन और अंग्रेजों के झुक जाने की तथा-कथा. साथ में प्रथम स्वाधीनता संग्राम के नायक मंगल पांडे के साथ अंग्रेजों की बर्बरता का प्रतीक जलियावालाबाग का पुण्य स्मरण. मासिक आवधिकता में भोपाल से प्रकाशित होने वाली शोध पत्रिका ‘समागम’ का हर अंक विषय विशेष पर केन्द्रित होता है. 17 वर्षों से नियमित प्रकाशन शोध पत्रिका ‘समागम’ की पहचान है. इस पत्रिका के सम्पादक वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया विश्लेषक के रूप में स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले श्री मनोज कुमार हैं.
प्रस्तुति - डॉ. लीना, सम्पादक मीडियामोरचा