नयी दिल्ली/ हिन्दी साहित्य की प्रख्यात पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ के इस माह लोकसंस्कृति विशेषांक में देश में करीब 36 क्षेत्रों की लोकसंस्कृतियों को अनूठे ढंग से संग्रहीत किया गया है तथा इसके साथ एक-डेढ़ सदी पहले प्रवासियों के साथ विश्व के अनेक भागों में फैली भारतीय संस्कृति और 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश में हुए सांस्कृतिक परिवर्तन पर भी विहगम दृष्टि डाली गयी है।
प्रभात प्रकाशन की इस मासिक पत्रिका में लोक संस्कृति में विज्ञान, चित्रकला एवं गीत-संगीत के पहलुओं को भी समेटा गया है। इसमें विभिन्न अंचलों की लघु लोक कथाओं को भी शामिल किया गया है। उत्तरी अमेरिका, कनाडा, रूस, यूनान, फ्रांस, स्वीडन, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, डेनमार्क, बंगलादेश आदि की लोककथाओं को भी जोड़ा गया है।
जिन लोक संस्कृतियों का परिचय कराया गया है, उनमें कन्नौज, अंडमान एवं निकोबार, अरुणाचल, असमिया, नागा, मिज़ो, मेघालय, मणिपुरी, त्रिपुरा, सिक्किम, बंगला, उत्कल, भोजपुरी, मैथिली, ब्रज, अवधी, बुन्देली, तमिल, तेलुगु, केरल, कन्नड़, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थानी, पंजाबी एवं हरियाणवी प्रमुख हैं। इन्हें इन क्षेत्रों के लेखकों, साहित्यकारों एवं प्राध्यापकों ने लिपिबद्ध किया है।
पत्रिका के संपादकीय एवं लेखों में भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् और विश्व बंधुत्व की परंपरा को रेखांकित किया गया है। भारत में यहूदियों एवं पारसियों को उनके बुरे वक्त में ससम्मान आश्रय दिये जाने और आरमीनियन, यूनानी, चीनी आदि देशों के लोगों के भारत आने और यहीं बस जाने का उल्लेख किया गया है तथा आंतरिक –बाह्य भिन्नताओं के बावजूद बौद्धिक रूप से उन्हें समझने और खुले दिल से स्वीकार करने की भारत की मानवीय विरासत से रूबरू कराया गया है।
साहित्य के जानकारों के अनुसार साहित्य अमृत का अगस्त 2017 का अंक भारत की लोकसंस्कृतियों का मुक्ताहार है। इस अंक में अनेक लोकसंस्कृतियों को उनके संपूर्ण रूप में पहली बार संक्षिप्त में लिपिबद्ध करने का सफल प्रयास किया गया है। यह अंक विद्यार्थियों एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं के साथ साथ साहित्य एवं संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिये एक अमूल्य एवं संग्रहणीय संस्करण है।