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"मसीहा मुस्कुराता है” का पुस्तक मेला में हुआ लोकार्पण

मगही के मशहूर कवि- कथाकार बाबूलाल मधुकर की है सद्य: प्रकाशित हिंदी काव्य-संग्रह

पटना/ मगही के मशहूर कवि, कथाकार एवं मशहूर "रमरतिया" मगही उपन्यास के रचनाकार (जिसका अनुवाद रूसी भाषा में भी हुआ है) बाबूलाल मधुकर के सद्य: प्रकाशित हिंदी काव्य-संग्रह "मसीहा मुस्कुराता है" का 13 फ़रवरी को पटना पुस्तक मेला में लोकार्पण हुआ। लोकार्पण  डॉ. संजय पासवान, पूर्व मंत्री, भारत सरकार, आलोकधन्वा, हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, हरींद्र विद्यार्थी कवि (मगही एवम हिंदी),  डॉ. मुसाफ़िर बैठा, कवि एवं चिंतक, और  अरविन्द पासवान, युवा हिंदी कवि तथा पुस्तक मेले के संयोजक रत्नेश्वर एवं विनीत ने किया।

खुद बाबूलाल मधुकर बीमार होने की वजह से कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके।

आलोक धन्वा जी ने अपने संबोधन में कहा कि मधुकर जी हमलोगों के गुरु और साथी दोनों रहे। उन्होंने जे.पी. आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभायी। पटना का कोई ऐसा नुक्क्ड़ नहीं जिसपर मधुकर जी ने कविता न सुनायी हो। सबसे पहले उनकी कविता 1957 में प्रकाशित हुई। मधुकर जी ने अपने दर्द को, समाज के दर्द को शब्दों में बयाँ किया है। 76 की उम्र में उनके जज़्बात को सलाम है। इस नई पुस्तक के लिए उन्हें बधाई। 

डॉ. संजय पासवान ने उनकी रचना-प्रक्रिया पर बात की। उनके जीवन संघर्षों को विस्तार से बताया। श्री पासवान ने कहा कि वे जबतक अपने नाम में 'पासवान' लगाकर रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में भेजते रहें, तबतक प्रकाशित नहीं हुई, ज्योंही 'पासवान' हटाकर 'मधुकर' लिखा रचनाएं प्रकाशित होने लगीं। अब समय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं, संवाद का है। न कोई शिकार हों, न कोई शिकारी।रहे। श्री पासवान ने बताया कि मधुकर की रचना का अनुवाद रूसी में हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि हमलोग सुरक्षित सीट से MP, MLA होते हैं। मधुकर जी MLC थे जहाँ कोई reservation नहीं है।
कवि - चिंतक डॉ. मुसाफ़िर बैठा ने लोकार्पित पुस्तक को रचना, भाषा, शिल्प, कथ्य, भाव और तमाम साहित्य की कसौटी से कसने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि पुस्तक में 75 से अधिक कविताएं हैं, जिनमें अधिकांश वैचारिक और सामजिक सरोकार की रचनाएं हैं। भाव और कथ्य की दृष्टि से कविताएं पठनीय है। दलित साहित्य एवं अम्बेडकरी चेतना के परिपेक्ष्य में भी उन्होंने मधुकर जी की प्रस्तुत संग्रह की रचनाओं को देखा। 
हरींद्र विद्यार्थी ने विस्तार से उनके जीवन-संघर्ष, उनकी रचनाधर्मिता और प्रतिबद्धता पर खुलकर बातें की। संकलन से कई कविताओं का सुंदर पाठ भी किया।
उभरते हुए युवा हिंदी कवि अरविंद पासवान ने बाबूलाल मधुकर की संग्रह से तीन कविताओं का पाठ किया : 'अकेले-अकेले' 'तिरस्कार' और 'ओ आदिवासियों'।
 
कार्यक्रम का संचालन मुसाफ़िर बैठा ने किया।

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सम्पादक

डॉ. लीना