Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

साहित्य में कालजयी हैं माखनलाल चतुर्वेदी : अच्युतानंद मिश्र

नोएडा। माखनलाल चतुर्वेदी सदैव अपनी साहित्यिक एवं पत्रकारीय कृतित्व के कारण जनमानस के अवचेतन में मौजूद रहेंगे। पत्रकारिता, राजनीति, साहित्य और शिक्षण के साथ ही उनका राष्ट्रीय दायित्व बोध भी अवलंबित होता है। पंडित माखनलाल की पत्रकारिता एक आंदोलनकारी पत्रकारिता के रूप में थी। सर्कुलेशन बढ़ाने, विज्ञापन छापने तथा धनोपार्जन के लिए पत्रकारिता धर्म से समझौता न करना उनकी प्रवृत्ति थी। पं. माखनलाल चतुर्वेदी की 129 वीं जयंती के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नोएडा परिसर में आयोजित राष्ट्रीय संविमर्श में उन्होंने ये विचार व्यक्त किए।  एक दिवसीय राष्ट्रीय संविमर्श का विषय था  ‘पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्यिक और पत्रकारीय अवदान’ ।  

मिश्र ने कहा कि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता में सामाजिक न्याय एवं समरसता विद्यमान है। उनकी रचनाधर्मिता राष्ट्रवादी पत्रकारिता को बल देती है, माखनलाल चतुर्वेदी से जुड़े ऐतिहासिक पक्षों का उल्लेख करते हुये मिश्र जी ने कहा कि चतुर्वेदी जी एक साहसिक पत्रकार थे। गांधी से भगत सिंह की फांसी के बारे में उनका साक्षात्कार राष्ट्रीय क्रांतिकारी दृष्टिकोण दिखाता है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का उनके आवास स्थित खंडवा जाकर सम्मानित करना उनके साहित्यिक गम्भीरता को दर्शाता है। उनके पत्रकारीय अवदान का विस्मरण कर एक समाज की मूल्यनिष्ठ पत्रकारिता असंभव है।

संवेदनशील रचनाधर्मी थे पंडित माखनलाल चतुर्वेदी : डॉ सच्चिदानद जोशी

संविमर्श में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने संबोधित करते हुये कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी शर्तों पर पत्रकारिता की। चर्तुर्वेदी जी ने मुख्यमंत्री का पद त्याग कर पत्रकारिता के कठिन मार्ग का चयन किया। माखनलाल जी में संवेदनशीलता के साथ-साथ एक श्रेष्ठ संपादक के गुण भी विद्यमान थे।  आज के दौर में संचार की व्यापकता इस कदर बढ़ गयी है कि लोग पास होकर भी अपने से दूर हो गए। आज जो लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करने लगे हैं उन्हें माखनलाल जी के सामाजिक एवं सरोकारीय साहित्य को पढ़ना चाहिए।

आज की युवा पीढ़ी को जरूरत है माखनलाल जी के आदर्शों को अपनाने की : प्रो संजय द्विवेदी

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार संजय द्विवेदी ने कहा कि आज जब हर आदमी संचारक है, कैमरामैन है, लेखक है, उस दौर में आपको अपनी भूमिका स्वयं तय करनी पड़ती है। मेहनत करके अपने दायित्व का निर्वहन किया जा सकता है। माखनलाल जी के पत्रकारीय चेतना के उत्तराधिकारी बनने के लिए हमें भी हुनर को विकसित करना चाहिए ताकि राष्ट्रहित की पत्रकारिता की जा सके।

आयोजन से विकसित होती है चेतना : प्रो अरुण कुमार ​

परिसर के प्रभारी प्रोफेसर अरुण कुमार भगत ने विषय प्रवर्तन करते हुये एक  दिवसीय संविमर्श कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की और कहा कि अध्ययन के साथ-साथ कार्यक्रम और आयोजन से व्यक्त पूर्ण बनता है जिसमें बौद्धिक, सामाजिक एवं सामयिक विषयों की मीमांसा से उसकी बुद्धि निखरती है और समाज को करीब से देखने और समझने की स्वयं की दृष्टि विकसित होती है। उदघाटन सत्र का संचालन सहायक प्राध्यापक सूर्य प्रकाश तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ सौरभ मालवीय ने किया।

द्वितीय सत्र में राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ इंदुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि माखनलाल जी ने पत्रकारिता की भाषा को लचीला बनाकर विभिन्न भारतीय भाषाओं में पहचान दिलाई है। पत्रकारिता की भाषा को शिखर तक ले जाने में माखनलाल जी की पत्रकारिता का अग्रणी स्थान है। दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ हेमंत कुकरेती ने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुये कहा कि अपनी कविताओं के माध्यम से माखनलाल जी ने शब्दरचना के कलाबोध को जनमानस के पटल पर उतारकर कविता के  उच्च मानक स्थापित किए हैं।   

हिमांचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष प्रो बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि पत्रकारिता कोई बौद्धिक क्रियाकलाप नहीं है। पत्रकारिता एक जीवन दृष्टि है जो राष्ट्र व समाज को जोड़ती है। पत्रकारिता के जो मानवीय सरोकार हैं, उनको समझना नितांत जरूरी है। पत्रकारिता राष्ट्रीय मानसिकता को ध्यान में रखकर करनी चाहिए ताकि जनकल्याण संभव हो सके। ख़्वाहिशों के चक्कर में मनुष्यता की बलि चढ़ा देना पत्रकारिता का अवमूलन है। द्वितीय सत्र का संचालन डॉ सौरभ मालवीय तथा धन्यवाद ज्ञापन मीता उज्जैन ने किया।       

तृतीय सत्र में संविमर्श के आयोजन की अगली कड़ी में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अध्यक्ष डॉ राम शरण गौड़ ने कहा कि बिना राष्ट्र समर्पण के भौतिकवादी सुविधाओं पर पर केंद्रित पत्रकारिता समाज के पतन का कारण बनती है। साहित्य, श्रम और समाजहित का समन्वय माखनलाल जी की पत्रकारिता में दिखाई पड़ता है, उन्होने समाज को जो रास्ता दिखाया है उसी लिए उन्हें एक भारतीय आत्मा कहा जाता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अवनिजेश अवस्थी ने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता में  प्रांतवाद, क्षेत्रवाद सहित विभाजन के अनेक पहलुओं से हटकर राष्ट्रीयता की भावना सर्वोपरि दिखाई देती है। माखनलाल जी साहित्यकार, कवि, राजनीतिज्ञ, पत्रकार के साथ-साथ दूरदृष्टा भी थे, उन्होने लिखा है कि अगर कुछ जानना है तो स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के बारें में जानो ताकि उनकी जीवन गाथा कुछ प्रेरक भाव उत्पन्न कर सके। माखनलाल जी के एक-एक शब्द अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख देते थे।,हमें उनकी पत्रकारिता से सीखना चाहिए। अगले वक्ता के रूप में परिसर के प्रोफेसर डॉ बीएस निगम ने सभागार को संबोधित करते हुये कहा कि राष्ट्र जागरण में पंडित माखनलाल जी कृतियों में हमें उनके आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक पक्षों का अध्ययन करना चाहिए ताकि हम उनकी रचना के अनेक रहस्यों से परिचित हो सकें। तृतीय सत्र का संचालन सहायक प्राध्यापक लाल बहादुर ओझा तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ रामशंकर ने किया।

कार्यक्रम समापन सत्र के अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित प्रतिभा-2018 में विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कार वितरण वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो प्रेमचंद पतंजलि एवं प्रो संजय द्विवेदी द्वारा किया गया। इस सत्र का संचालन रजनी नागपाल एवं आभार ज्ञापन राकेश योगी ने किया।    

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना