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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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श्रेष्ठ डिजाइन मैत्री और प्रेम का प्रतीक : अक्षत वर्मा

दिल-दिमाग दोनों से बनते हैं डिजाइन : प्रो. बृज किशोर कुठियाला

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में 'विजुअल डिजाइन' पर  दो दिवसीय कार्यशाला

भोपाल। डिजाइन का उद्देश्य हमारे जीवन जीने के तरीके को सुगम बनाना है। डिजाइन करते वक्त हमें ध्यान रखना चाहिए कि प्रोडक्ट उपयोग करने में आसान बने। प्रोडक्ट उपयोग करने में जितना सहज होगा, उसका डिजाइन उतना ही श्रेष्ठ माना जाएगा। श्रेष्ठ डिजाइन मैत्री और प्रेम का भी प्रतीक है। अच्छे डिजाइन से हमें प्रेम हो जाता है। इसी अवधारणा के कारण पिछले कुछ वर्षों में डिजाइनिंग के क्षेत्र में काफी नवाचार हुए हैं। मोबाइल फोन इसका सबसे बढिय़ा उदाहरण है। डिजाइनिंग के क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार के भी अनेक अवसर हैं। यह विचार डिजाइन एण्ड स्ट्रेटजी के विद्वान अक्षत वर्मा ने व्यक्त किए। श्री वर्मा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नवीन मीडिया प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से 'विजुअल डिजाइन' पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे।

कार्यशाला का उद्घाटन कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि डिजाइन बनाने के लिए दिल और दिमाग दोनों की जरूरत होती है। कार्यशाला में पहले दिन चार सत्रों में अलग-अलग विषयों पर विशेषज्ञों ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया।

डिजाइन की प्रक्रिया के संबंध में अक्षत वर्मा ने कहा कि कोई भी डिजाइन अचानक नहीं बन जाता है। उसके पीछे कोई न कोई योजना, विचार, तथ्य और उद्देश्य होता है। जैसे कोका कोला पहली कंपनी है, जिसने अपनी ब्रांडिंग के लिए बोटल डिजाइन कराई। बोटल के आकार (डिजाइन) के पीछे कोका नामक बीज का आकार है। इसी कोका बीज से यह पेय बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि किसी भी प्रोडक्ट का डिजाइन तैयार करने से पहले उसके कार्य और उपयोग को अच्छे से समझ लेना जरूरी होता है। क्योंकि, डिजाइन के जरिए हमें उस प्रोडक्ट को आकर्षक बनाने से कहीं अधिक उसके कार्य और उपयोग को सुगम बनाना है। श्री वर्मा ने अनेक उदाहरण देकर विद्यार्थियों को अच्छे डिजाइन और बुरे डिजाइन में अंतर समझाया। भविष्य में डिजाइन के क्षेत्र में किस तरह के प्रयोग होने वाले हैं, इसकी भी प्रस्तुति उन्होंने दी।

प्रकृति में है डिजाइन का कॉन्सेप्ट : कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि हमारे आसपास डिजाइन के अनेक कॉन्सेप्ट उपलब्ध हैं। प्रकृति में भी डिजाइन का कॉन्सेप्ट है। एटम का स्ट्रक्चर भी ब्रह्माण्ड के डिजाइन के समान है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति पत्थर से मूर्ति बना देता है, एक व्यक्ति रंग और कूची से चित्र बना देता है। पत्रकारिता से जुड़े लोग शब्दों से शब्द चित्र बना देते हैं। यह भी डिजाइन ही है। संचार का डिजाइन सत्यम् शिवम् सुन्दरम् पर आधारित है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक डिज़ाइनर छिपा हुआ है। उसे कैसे अभिव्यक्ति देना है, वह हमें सीखना चाहिए।

डिजाइनर बनना है तो अपने अंतस की आवाज सुने : एस्थेटिक्स इन डिजाइन विषय पर विश्वविद्यालय के डीन अकादमिक अफेयर्स एवं कुलसचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि एस्थेटिक्स का जीवन के हर पहलू में महत्व है। यदि डिजाइन के क्षेत्र में आगे बढऩा है तो हमें अपनी दृष्टि में एस्थेटिक्स सेंस को विकसित करना होगा। दुनिया में देखते तो सभी हैं लेकिन दृष्टि बहुत कम लोगों के पास ही होती है। इसलिए अगर आपको डिजाइनर बनना है तो आप अपने अंतस की आवाज को सुनें और अपने अंतरबोध को विकसित करें। इसके साथ ही एसेंशियल्स ऑफ डिजाइन पर निफ्ट के किसलय चौधरी,टाइपोग्राफी इन डिजाइन पर पत्रकार रईस खान और ग्राफिक्स डिजाइन पर स्वाति राजौरिया ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा भी मौजूद थे। उद्घाटन सत्र का संचालन नवीन मीडिया प्रौद्योगिकी विभाग की अध्यक्षा डॉ. पी. शशिकला ने किया।

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सम्पादक

डॉ. लीना