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शोध की भारतीय दृष्टि सही निष्कर्षों पर पहुँचायेगी

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में "भारतीय शोध दृष्टि" विषय पर राष्ट्रीय संविमर्श 

भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय तथा पुनरूत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद द्वारा भोपाल में "भारतीय शोध दृष्टि" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संविमर्श का आयोजन कल से किया गया। गोष्ठी का उद्घाटन पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद की कुलपति सुश्री इन्दुमती काटदरे ताई द्वारा किया गया। इस अवसर पर म.प्र. शासन के ऊर्जा एवं जनसम्पर्क मंत्री मान. श्री राजेन्द्र शुक्ल, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति श्री बृज किशोर कुठियाला, श्री मुकुल कानिटकर विशेष रूप से उपस्थित थे। गोष्ठी में कई राज्यों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।

सुश्री इन्दुमती ताई ने अपने बीज वक्तव्य में शिक्षा के स्तर की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से देश में किसी के ऊपर दिखाई नहीं देती है। अधिकृत संस्थायें प्राध्यापकों को जिम्मेदार बताती है और प्राध्यापकगण अन्य प्राधिकृत संस्थाओं को जिम्मेदार बताते हैं। उन्होंने कहा कि शोध प्रक्रिया के पहले पूरी शब्दावली पर विचार होना चाहिए। श्रेष्ठ ज्ञान सभी दिशाओं और क्षेत्रों से प्राप्त करना चाहिए। प्राध्यापकों द्वारा ज्ञान को उचित स्थान दिलाने के पहले ज्ञानमार्ग में बिछे कांटों को हटाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय दृष्टि हमेशा वैश्विक रही है। यहां आध्यात्मिकता की वैश्विकता है जबकि आजकल भौतिक वैश्विकता अर्थात् बाजार की मांग होती है।

श्री राजेन्द्र शुक्ल ने अपने सम्बोधन में कहा कि ज्ञान को राजनैतिक इच्छाशक्ति द्वारा तेजी से फैलाया जा सकता है। जैसे कि योग विद्या को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा योग दिवस घोषित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हमारी विरासत में हर विषय का श्रेष्ठ विचार मौजूद है।

उद्घाटन अवसर पर संबोधित करते हुये विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुठियाला ने कहा कि यह एक स्थापित तथ्य है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का जन्म कम से कम 5000 वर्ष पूर्व हुआ है जबकि शेष विश्व में मानवता की प्रारंभिक स्थिति थी। उन्होंने इन्टरनेट का उल्लेख वेदों में इन्द्रजाल के रूप में बताया है। उन्होने कहा कि प्राचीन ग्रन्थों के संदर्भ लेने से आज के शोध में गुणवत्ता की वृद्धि होगी, परन्तु इससे भी महत्वपूर्ण यह समझना है कि ऋषि मुनियों की शोध विधियां क्या थी जिनसे इतने प्रमाणिक ज्ञान का निर्माण हो सका।

संविमर्श के प्रथम सत्र में श्री प्रो. राकेश मिश्रा, प्राध्यापक, लखनऊ विश्वविद्यालय ने "भारतीय विचार क्षेत्र में आत्म विस्मृति एवं शोध क्षेत्र" पर वक्तव्य दिया, द्वितीय सत्र में श्री वासुदेव प्रजापति, पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद ने "विभिन्न विषयों का अगांगी संबंध" विषय पर पावर पाइन्ट प्रेजेन्टेशन दिया। दोनों वक्ताओं ने मुक्त सत्र में उपस्थित विद्वतजनों के प्रश्नों और जिज्ञासाओं का समाधान किया।

प्रारंभ में विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा ने विश्वविद्यालय के कार्यों और गोष्ठी की प्रस्तावना के विषय में जानकारी दी। कुलसचिव श्री सच्चिदानंद जोशी ने मंचासीन अतिथियों एवं राष्ट्रीय संविमर्श में पधारे सभी विद्धत्जनों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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सम्पादक

डॉ. लीना