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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मीडिया-पुलिस रिश्तों में सहजता के लिए प्रशिक्षण जरूरी

एमसीयू में ‘पुलिस और मीडिया में संवाद’ पर संगोष्ठी

भोपाल,18 सितंबर। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के तत्वाधान में ‘पुलिस और मीडिया में संवाद विषय पर आयोजित संगोष्ठी का निष्कर्ष है कि पुलिस को मीडिया से संवाद के लिए प्रशिक्षण दिया जाए तथा पत्रकारों के लिए भी पुलिस से बातचीत करने और अपनी रिर्पोटिंग के दिशा निर्देश तय करने की जरूरत है। इससे ही सही मायने में दोनों वर्ग एक दूसरे के पूरक बन सकेंगें और लोकतंत्र मजबूत होगा। आयोजन में उपस्थित देश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों एवं वरिष्ठ मीडियाकर्मियों ने इस अवसर पर कहा कि ऐसे संवाद से रिश्तों की नयी व्याख्या तो होगी ही साथ ही काम करने के लिए नए रास्ते बनेंगें।

कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने आयोजन की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संवाद सही मायने में मीडिया और पुलिस के बीच एक सेतु बनाने का काम करेगा। हमारी एक दूसरे पर निर्भरता होने के बावजूद रिश्तों में सहजता और काम में सकारात्मकता नहीं दिखती। कोई भी रिश्ता संवाद से ही बनता और विकसित होता है। समाज के दो मुख्य अंग मीडिया और पुलिस अलग-अलग छोरों पर खड़े दिखें यह ठीक नहीं है।हमें सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति एवं सहायता के लिए आगे आना होगा। 

इस अवसर पर अमर उजाला के संपादक देवप्रिय अवस्थी ने कहा कि खबरों में नमक-मिर्च लगाकर पेश करना और उसे चटखारेदार बनाने के प्रयासों में पत्रकारिता भटक जाती है। पुलिस जहां तथ्यों को दबाने के प्रयासों में होती है वहीं पत्रकार की कोशिश चीजों को अतिरंजित करके देखने की होती है, जबकि दोनों गलत है। आज भी पुलिस को देखकर समाज में भय व्याप्त होता है। इस छवि को बदलने की जरूरत है। मीडिया इसमें बडी भूमिका निभा सकता है। मीडिया ट्रायल की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी प्रवृत्तियां मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती हैं। अपराध और अपराधीकरण को ग्लैमराइज्ड करना कहीं से उचित नहीं कहा जा सकता है। उनका कहना था कि पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त कर पुलिसिंग में लगाने की जरूरत है।

सीबीआई के पूर्व निदेशक डी. आर. कार्तिकेयन ने कहा कि पत्रकारिता की भूमिका मानवाधिकारों तथा लोकतंत्र की रक्षा के लिए बहुत महत्व की है। यह एक कठिन काम है। पारदर्शिता को पुलिस तंत्र पसंद नहीं करता पर बदलते समय में हमें मीडिया के सवालों के जबाव देने ही होंगें। आज जबकि समूचे प्रशासनिक, राजनीतिक तंत्र से लोगों की आस्था उठ रही है तो इसे बचाने की जरूरत है। सुशासन के सवाल आज महत्वपूर्ण हो उठे हैं। ऐसे में सकारात्मक वातावरण बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ईमानदारी और जनसेवा का संकल्प लेकर ही हम मीडिया या पुलिस में आते हैं। यह दिखना भी चाहिए। ऐसे समय में जब अविश्वास और प्रामणिकता का संकट सामने हो तब मीडिया का महत्व बहुत बढ़ जाता है क्योंकि वह ही मत निर्माण का काम करती है। एक लोकतंत्र के लिए मीडिया का सक्रिय और संवेदनशील होना जरूरी है और यह शर्त पुलिस पर भी लागू होती है। भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के दौर में मीडिया के काम काज पर सवालिया निशान उठ रहे हैं, उसका समाधान मीडिया को ही तलाशना होगा।

खुले सत्र में हुयी अनेक मुद्दों पर चर्चाः संगोष्ठी के दूसरे एवं खुले सत्र में अनेक विषयों पर चर्चा हुयी। इस सत्र की अध्यक्षता महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय ने की। उनका कहना था कि आज मीडिया और पुलिस एक दूसरे की विरोधी भूमिका में दिखते हैं। खबरों को प्लांट करना भी हमारे सामने एक बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि हमारे रिश्ते दरअसल हिप्पोक्रेसी पर आधारित हैं। पुलिस छिपाती है और पत्रकार कुछ अलग छापते हैं। इसमें विश्वसनीयता का संकट बड़ा हो गया है। इस सत्र में सर्वश्री एस.के. झा, अनवेश मंगलम, अरूण गुर्टू, लाजपत आहूजा, नरेंद्र प्रसाद, रमेश शर्मा, शिवअनुराग पटैरया, दीपक तिवारी,राजेश सिरोठिया,बृजेश राजपूत ने अपने विचार रखे।

दूसरे सत्र में गूंजे तमाम सवालः संगोष्ठी के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी एवं रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के पूर्व कुलपति अरूण गुर्टू ने कहा कि जब तक राजनीतिक हस्तक्षेप बंद नहीं होता अच्छी पुलिसिंग संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि मीडिया व पुलिस के उद्देश्य दरअसल जनहित ही हैं। ऐसे में पारदर्शिता और प्रोफेशलिज्म से सही लक्ष्य पाए जा सकते हैं।इस सत्र में सर्वश्री मदनमोहन जोशी, गिरीश उपाध्याय,जीके सिन्हा, पूर्व पुलिस महानिदेशक –मप्र एस.सी.त्रिपाठी, जीएस माथुर,रामजी त्रिपाठी, जीपी दुबे,राजेंद्र मिश्र, के.सेतुरमन रामभुवन सिंह कुशवाह, मनीष श्रीवास्तव, ने अपने विचार रखे।

संवाद के सुझावः 

1.      पुलिस और मीडिया के बीच निरंतर संवाद की जरूरत है।

2.      पुलिस की छवि बदलने के लिए सकारात्मक खबरें भी प्रकाशित की जाएं।

3.      सभी राज्यों में जिला स्तर पर पुलिस विभाग में एक प्रोफेशनल जनसंपर्क अधिकारी की नियुक्ति की जाए।

4.      पुलिस के कामों और सेटअप को समझने के लिए मीडियाकर्मियों का प्रशिक्षण हो तथा पुलिसवालों का मीडिया उन्मुखीकरण तथा कम्युनिकेशन दक्षता बढ़ाने के प्रयास हों।

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सम्पादक

डॉ. लीना