Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

पत्रकारिता के नाम पर किसी खास विचारधारा के प्रचार को रोकना जरूरी: प्रो. संजय द्विवेदी

“आपदाकाल में पत्रकारिता का राष्ट्र धर्म” विषयक राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का हुआ आयोजन

मोतिहारी/  महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के मीडिया अध्ययन विभाग द्वारा 'आपदाकाल में पत्रकारिता का राष्ट्र धर्म' विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन  हुआ। इस राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने सभी वक्ताओं का स्वागत करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि  आज सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या विस्फोट है। पत्रकारिता के माध्यम से इस गंभीर समस्याओं को उठाने का कार्य सर्वोपरि होना चाहिए। जनसंख्या की समस्याओं को जाति, धर्म, पद और कुर्सी की राजनीति से ऊपर उठकर देखने की जररूत हैं। मीडिया को स्वतंत्र भाव से इस मुद्दे को जोर-शोर से राष्ट्रहित में प्रचारित व प्रसारित करने की आवश्यकता है। राष्ट्र का विकास जनसंख्या पर ही निर्भर है लेकिन जनसंख्या का विस्फोट ठीक नहीं है । आज कोरोना संकट ने हमें यह बता दिया कि आपदा का कारण जनसंख्या भी हैं।

बतौर मुख्य अतिथि  भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि भारतीय मीडिया ने हर संकट का चुनौतीपूर्ण सामना किया हैं। आपदा काल में संकटों से जूझने का अभ्यास किसी को नहीं है। इन संकटों में राजनीतिक अवसर भी तलाशे जाते हैं। आज देश की बड़ी आबादी भी एक संकट है। यह पत्रकारिता के लिए दुख की बात है कि आज समाज राजनीतिक आस्थाओं को ही सच मान लिया है। आपदा काल में देश या राज्य की विफलता सिर्फ एक राजनेता की नहीं बल्कि पूरे लोकतंत्र की विफलता है। उत्तर भारत में संकट ज्यादा है, यहां हर आपदा को राजनीतिक अवसर के रूप में देखा जाता है और समाज को इन संकटों से जूझने की आदत हो गई हैं। आजादी के बाद दुख और दर्द कम नहीं हुआ। गांव खाली हो गए और शहर भर गए। राजनीति में जातिवाद भी है, हर जाति का अपना इतिहास रहा है। हर जाति के महापुरुष हुए हैं लेकिन जाति के नाम पर भेदभाव करना सही नहीं है। मीडिया को इन तमाम बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। आज माननीय प्रधानमंत्री द्वारा लोकल के लिए वोकल बनने की बात की गई हैं, जो जनहित हेतु एक अच्छा कार्य है। आज जर्नलिस्ट के भेष में एक्टिविस्टों ने प्रवेश कर लिया है।  जर्नलिस्ट का काम अलग है और एक्टिविस्ट का काम अलग है, दोनों को गंभीरता से पहचानने की जरूरत है। पत्रकारिता के नाम पर किसी खास विचारधारा के प्रचार को रोकना अत्यंत जरूरी है।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर पांचजन्य, दिल्ली के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि भारत के संदर्भ में आपदाकाल को देखें तो कम से कम तीन ऐसे आपदा काल हुए जब पत्रकारिता की अग्निपरीक्षा हुई। पहला - स्वतंत्रता आंदोलन, दूसरा- 1975 का आपातकाल और तीसरा- कोरोनाकाल। अगर हम इतिहास देखें तो राष्ट्र को जगाने वाला और राष्ट्र को एक करने का काम मीडिया का रहा है। जब देश में संकट आया या जब समाज को जगाना हुआ तो पत्रकारिता ही एक सफल माध्यम बना। 1975 के आपातकाल को 1971 से देखना चाहिए।  आपातकाल में मीडिया ने अच्छा कार्य किया। कोरोनाकाल एक अफवाह काल भी है। पहले मीडिया में अगर कुछ गलत प्रकाशित हो जाता था तो उस पर अगले दिन माफी मांगी जाती थी, खेद प्रकट किया जाता था लेकिन अब आदत हो गई है। आज झूठी खबरों का तिरस्कार नहीं हो रहा है। शरारतपूर्ण ढंग से गलत खबरों को भी फैलाई जाती है। कुछ मीडिया ने सीएए को नागरिकता देना नहीं बल्कि नागरिकता लेना बताया। दिल्ली दंगा में अफवाह फैलाया गया। दिल्ली के आनंदविहार में प्रवासी मजदूरों के बीच अफवाह फैलाया गया। आगे उन्होंने कहा कि आज पत्रकारों को जनपथ पर रहने की जरूरत है राजपथ पर घूमने की जरूरत नहीं। इशारा साफ था कि स्वयं स्वार्थ सिद्धि के लिए सत्ता से चिपके रखने की कोशिश ठीक नहीं हैं।  मीडिया के छात्रों का मार्गदर्शन करते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप पत्रकारिता ग्लैमर और चकाचौंध के चक्कर में कर रहे हैं तो इस क्षेत्र में न आएं। 

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन विभाग के अध्यक्ष सह संगोष्ठी अध्यक्ष डॉ. प्रशांत कुमार ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करना और सभी सम्मानित वक्ताओं को सुनना इस विभाग के लिए सौभाग्य की बात है। मीडिया को जानकारी देते हुए डॉ प्रशांत कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में 'आपदा काल में पत्रकारिता का राष्ट्रधर्म' विषय के विविध आयामों पर विशेषज्ञों द्वारा गहनता से चर्चा की गई जो मीडिया से जुड़ें शिक्षकों, पत्रकारों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों के लिए  व्यावहारिक दृष्टिकोण से ज्ञानवर्धक रहा। यह राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी गूगल मीट के माध्यम से आयोजित की गई, साथ ही विश्वविद्यालय के फेसबुक  पृष्ठ पर भी लाइव किया गया। जिसमें पूरे देश के विभिन्न प्रांतों से  सैकड़ों की संख्या में मीडिया एवं अन्यान्य विषयों के छात्र, शोधार्थी एवं पेशेवर प्रतिभागी सक्रिय रूप से सहभागिता किए। अतिथियों  के उद्बोधन के बाद प्रतिभागियों के सवालों का जवाब भी वक्ताओं ने दिया।

वेब संगोष्ठी का संचालन महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अंजनी कुमार झा ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन मीडिया अध्ययन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उमा यादव ने दिया।

 मीडिया अध्ययन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. साकेत  रमण इस संगोष्ठी के आयोजन सचिव थे। डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र एवं डॉ. सुनील दीपक घोडके आयोजन समिति में थे। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शोध एवं विकास  संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजीव कुमार, शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. आशीष श्रीवास्तव, गांधी अध्ययन विभाग के सह प्रोफेसर डॉ. असलम खान, डॉ. जुगुल दाधीचि भी सक्रिय रूप में जुड़े रहें। साथ ही पीआरओ शेफालिका मिश्रा व सिस्टम एनालिस्ट दीपक दिनकर ने तकनीकी सहयोग किया। इस संगोष्ठी में अन्य विभागों के प्राध्यापकों सहित शोधार्थी एवं छात्र भी सक्रिय रूप से जुड़े थे।

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना