नई दिल्ली . जिस समय कश्मीर समस्या पूरे देश में सोशल मीडिया से लेकर अख़बारों तक चर्चा का विषय है, ऐसे समय वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश जी की किताब ‘कश्मीर: विरासत और सियासत‘ का लोकार्पण कई मायनों में महत्वपूर्ण है। लोकार्पण के समय हुई चर्चा में दो बातें मुख्य तौर पर उभर कर आईं एक कि कश्मीर समस्या का समाधान ढूंढते दिमागों को सबसे पहले समस्या को ही समझने पर ध्यान देना चाहिए, जो कि कमाबेश होता दिखाई नहीं दे रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप जहां कश्मीर में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है वहीं पूरे देश और कश्मीर के बीच एक दूरी आती जा रही है जिस पर वक्त रहते ध्यान न दिया गया तो आगे गंभीर परिणाम देखने मिलेंगे। दूसरी यह कि हिंदी में सूचनाओं का अभाव होना जहां चिंता का विषय है वहीं इसके दुष्परिणाम ग़लत सूचनाओं का प्रसार करने वालों के हौसले बुलंद करते हैं। इसलिए हिंदी में ऐसी ज़रूरी सूचनाओं को लिए ऐसी किताब का आना एक बेहतरीन शायद नहीं लेकिन ज़रूरी दस्तावेज़ है।
कार्यक्रम की तस्वीर जहां तक कश्मीर मसले को लेकर चर्चा का विषय है,किताब को संदर्भ में लेकर इसके कई आयामों पर सभी वक्ताओं ने अपने अपने मत रखे। सबसे मुख्य बात जैसा कि पहले भी बताया गया कि कश्मीर समस्या को सुलझाने के क्रम में सबसे पहले ज़रूरी है समस्या को समझना। उर्मिलेश जी किताब के चैप्टर्स का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि वाकई अब तक भारत की तरफ से कई बार इस दिशा में मुकम्मल कोशिशें की गईं, इसमें वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दौर को भी अहम बताते हैं।
बीते समय उड़ी में हुई घटना को लेकर पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में बैन करने की मांग को नाजायज़ ठहराकर कहा गया कि राजनीतिक समस्या को राजनीतिक तरह से ही हल किया जाना जाना चाहिए। कश्मीर में रोज़गार की समस्या से लेकर अराजक होते माहौल पर ध्यान लाने के प्रयास किये गए।
डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर संजय काक ने किताब के टाइटल कश्मीर विरासत और सियासत को कश्मीर किसकी विरासत और किसकी सियासत सवालनुमा बनाकर अपनी बात रखनी शुरू की, उन्होंने मुख्य रूप से क्रिएट फंडामेंटल स्पेस पर ध्यान दिलाया, उनका कहना था कि कश्मीरी युवा अपनी बात कह रहे हैं, अपने विचार सामने रख रहे हैं, हालात को मददेनज़र रखते हुए इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। वहीं राइज़िंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी ने भी कहा वी आर इन ए डिनायल मोड, हमें एक ईमानदार प्रयास की ज़रुरत है जिसमें फैलती ग़लतफहमियों को रोकने की ज़रुरत है।
कश्मीर चाहे स्वायत्त रहना चाहे या फिर भारत के साथ,दोनों ही पक्ष पर उग्र होकर प्रतिक्रिया देने के बजाय सबसे पहले समस्या के तह में जाकर समझने की जरूरत है। कोई माने या न माने कश्मीर में हालात बद से बदतर हो चले हैं, जिनको नज़रअंदाज़ करने या फिर सिर्फ भारत पाकिस्तान के बीच की रंजिश को ही ध्यान में रखकर देखने के घातक परिणाम हो सकते हैं।
सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर भारत पाकिस्तान युद्ध के नाम पर आज के हमारे मीडिया से सोशल मीडिया जिस तरह की उग्र प्रतिक्रियाओं से भरा पड़ा है वह बहुत ही निराशाजनक है साथ ही यह इस खाई को केवल बढ़ाने का ही काम करेगा, सेंसिबल समाधान की ओर अग्रसर करने के बजाय नफरतों को ही बढ़ाएगा।
बहरहाल कश्मीर की मूलभूत समस्याओं को समझना सबसे ज़रूरी है, और समझने के लिए उनको जानना उनसे रू-ब-रू होना पड़ेगा। उर्मिलेश जी की किताब कैसी है और किस हद तक अपने प्रयास में कामयाब रही या नहीं रही, यह भी चर्चा का विषय होना चाहिए, लेकिन सराहनीय बात यह है ऐसी सूचनाओं को समेटे किताब का हिंदी में उपलब्ध होना। सबसे अंत में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपने अनुभवों के जरिए कश्मीर की समस्या और उसके समाधान पर बात की। इसके अलावा कश्मीर को लेकर भारत सरकार के वार्ताकार रहे एम.एम.अंसारी, वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा ने भी अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में उर्मिलेश जी के विदेशों में कई गयी घुमक्कड़ी से उपजी किताब ‘किस्टेनिया मेरी जान’ का विमोचन किया गया। इस सत्र में हिंदी के चर्चित आलोचक वीरेंद्र यादव, कवि मंगलेश डबराल और भगत सिंह के स्कॉलर प्रो. चमनलाल ने भाग लिया। दोनों सत्र का संचालन राज्यसभा टीवी की एंकर आरफा खानम शेरवानी ने बहुत व्यवस्थित तरीके से किया। समारोह में जनता दल यूनाइटेड के राज्यसभा सांसद के सी त्यागी,आलोचना पत्रिका के संपादक अपूर्वानंद, समाजशास्त्री अभय कुमार दुबे, चित्रकार लाल रत्नाकर, राज्यसभा के एंकर इरफान इत्यादि लोग मौजूद रहे।
हॉल के एक कोने में ही उर्मिलेश की किताबों का एक स्टॉल लगा हुआ था। हमने वहीं से उर्मिलेश जी की दोनों किताबें खरीदी। कार्यक्रम के बाद चाय बिस्कुट की भी व्यवस्था थी। चाय के दौरान भी कश्मीर समस्या पर लिखी कायदे से हिंदी की पहली किताब 'कश्मीर विरासत और सियासत' पर चर्चा होती रही। -(आशिमा और श्रीमंत जैनेन्द्र की रिपोर्ट -उत्तरवार्ता से )