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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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पत्रकारिता और सार्वजनिक जीवन में शुचिता के मानदंड थे आचार्य बदरीनाथ वर्मा

साहित्य सम्मेलन में मनायी गयी जयंती और हुई दीपोत्सव कवि-गोष्ठी

पटना। पत्रकारिता के कीर्ति-स्तम्भ, मानवीय संवेदनाओं और सार्वजनिक जीवन में शुचिता के मानदंड तथा सरलता और विद्वता के प्रतिमान बिहार के प्रथम शिक्षा मंत्री आचार्य बदरी नाथ वर्मा एक अत्यंत मोहक और अनुकरणीय व्यक्तित्व थे। ‘विद्या ददाति विनयं’ के मूर्तमान दृष्टांत थे वे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद के अत्यंत आत्मीय मित्रों में परिगणित होने वाले प्रदेश के अग्र-पांक्तेय नेताओं में प्रतिष्ठित वर्मा जी बिहार के प्रथम शिक्षा मंत्री होते हुए भी इतनी सरलता और सादगी से रहते थे कि, उन्हें कोई आज देखता तो मामूली व्यक्ति समझ कर उपेक्षा करता, किंतु उस भेष में भी वे अत्यंत श्रद्धा-पात्र थे।

यह विचार आज यहां आचार्य वर्मा की जयंती के अवसर पर, साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और ‘दीपोत्सव-कवि-गोष्ठी’ की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किये। डा सुलभ ने कहा कि बदरी बाबू एक सिद्धांतवादी निर्भिक पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और मूल्यवान साहित्यकार भी थे। साहित्य सम्मेलन से उनका घनिष्ठ सरोकार था तथा सम्मेलन की सुमन-सुरभि के विस्तार में उनका भी अविस्मरणीय योगदान है।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि, आचार्य वर्मा हिन्दी हीं नही, बल्कि उर्दू और अंग्रेजी के भी विद्वान थे। वे जितने अच्छे संपादक थे उतने हीं अच्छे व्याख्याता भी थे। उन्होंने दैनिक पत्र ‘भारत मित्र’, राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘देश’ के अतिरिक्त पटना से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘सर्च लाइट’ के संयुक्त संपादक के रूप में उल्लेखनीय यश प्राप्त किया। वे साहित्य सम्मेलन से प्रकाशित पत्रिका ‘साहित्य’ का भी वर्षों तक संपादन किया।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, डा इंद्रकांत झा, हरेराम महतो तथा प्रो सुशील झा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये।

सम्मेलन की ओर से आज दीपावली की पूर्व संध्या पर ‘दीपोत्सव-कवि-गोष्ठी’ का भी आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन का आरंभ सुप्रसिद्ध कवि शंकर शरण मधुकर के इस दीपोत्सव-गीत से हुआ कि, “दीप जले तो जले किसी का दिल नहीं जलना चाहिये/ मौसम बदले तो बदले मन न बदलना चाहिये”।  कवि राज कुमार प्रेमी का कहना था कि, “रहे सलामत मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारा/ मालिक एक है डेरा चारो इंसा उसको है प्यारा”। पं शिवदत्त मिश्र ने कवियों को नसीहत देते हुए कहा कि, “रे कवि! तज मूढता तू/ हृदय में मृदु भाव भर ले”।

कवि आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने इन पंक्तियों से एक नयी उम्मीद जगायी- “ ज्योति पर्व आया है जगमग दीप जलाना है/ तिमिर-दुर्ग पर सत्प्रकाश का ध्वज फ़हराना है”। कवि ओम प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने रस बदलते हुए कहा कि, “ भोरे-भोर भकुआई/ दूर से चिल्लाई/ भैया की भौजाई/ अरे भकोल अब मत छिलो ओल”।  युवा कवि मुकुंद आनंद ने इन शब्दों से नकारा लोगों पर प्रहार किया कि, “जो लोग आकर दुनियां में कुछ कर नहीं रहे हैं/ वो जी रहे हैं इसलिये कि मर नही रहे हैं”।

अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने भी अपने इस गीत का सस्वर पाठ किया कि, “तम तमस मिट जाये जग से प्रेम-पुष्प खिले/ इस दीपोत्सव में जग मे जगमग दीप जले” । वरिष्ठ कवि डा नरेश पाण्डेय ‘चकोर’, कुमारी मेनका, कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, डा मनोज कुमार, पं गणेश झा, बांके बिहारी साव तथा नरेन्द्र देव तथा ने भी अपने मधुर गीतों से कवि-गोष्ठी को सार्थक किया। कवि-गोष्ठी के पश्चात सम्मेलन परिसर में दीप जला कर दीपावली मनायी गयी और मिठाइयां बांटी गयी।

 

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सम्पादक

डॉ. लीना