साहित्य अकादमी द्वारा ‘साहित्य और पत्रकारिता’ विषय पर परिसंवाद का आयोजन
नई दिल्ली/ साहित्य अकादमी द्वारा ‘साहित्य और पत्रकारिता’ विषय पर एक परिसंवाद का आयोजन गुरुवार को किया गया. परिसंवाद का उद्घाटन वक्तव्य प्रख्यात पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने दिया. अध्यक्षता प्रख्यात समालोचक एवं केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष कमल किशोर गोयनका ने की. साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुस्तक भेंट करके किया. अपने स्वागत वक्तव्य में उन्होंने कहा कि एक समय था जब पत्रकारिता और साहित्य एक दूसरे से बल प्राप्त करते थे और एक दूसरे को संस्कारित भी करते थे. लेकिन आज स्थितियाँ साहित्य एवं पत्रकारिता दोनों के लिए बदल चुकी हैं. दोनों ने अपनी परंपरा छोड़कर व्यावसायिकता की राह पकड़ ली है.
बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए साहित्य अकादमी के हिंदी परामर्श मंडल के सदस्य अरुण कुमार भगत ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों के लिए तथ्य और तत्त्व की ज़रूरत होती है जो कि समाज से ही प्राप्त होते हैं. उन्होंने दोनों की लोककल्याण से प्रेरित पृष्ठभूमि का ज़िक्र करते हुए कहा कि दोनों ने ही आज बाज़ार प्रेरित नज़रिया अपना लिया है जो कि दोनों के लिए सही नहीं है बल्कि समाज के लिए भी घातक है. हमें इन दोनों के आपसी रिश्तों को दोबारा से संतुलित करने की आवश्यकता है.
अपने उद्घाटन वक्तव्य में प्रख्यात पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि साहित्य शाश्वत सत्य को समर्पित होता है और वह मनुष्य के निर्माण में और समाज को आगे बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. पत्रकारिता आज साहित्य से ज़्यादा लोकप्रियता का एक माध्यम बन गया है. पहले सभी राजनेता और साहित्यकार पत्रकारिता के ज़रिए राजनीति की लड़ाई लड़ते थे लेकिन उनकी पत्रकारिता में राजनीति नहीं होती थी. उस समय उन दोनों का लक्ष्य एक ही था और वह था देश की आजादी और एक स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण. वह समय नैतिकता और साहस का काल था. स्वतंत्रता के बाद परिस्थतियाँ बदलीं और पूँजी और तकनीक का प्रभाव बढ़ गया. अब हमें यह सोचना होगा कि वर्तमान समय में हम कैसे इन दोनों में सामंजस्य स्थापित करें जिससे समाज की नैतिकता के नए संदर्भों को रेखांकित किया जा सके.
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में समालोचक एवं केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष कमल किशोर गोयनका ने कहा कि साहित्य ने पत्रकारिता को हमेशा नैतिकता का बल दिया है और उसने हमेशा समाज के साथ एक संवाद की प्रक्रिया बनाए रखी है. उन्होंने विभिन्न विचारधाराओं के साहित्य और पत्रकारिता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे समय में हमारी वैचारिक प्रतिबद्धता देशहित के लिए होनी चाहिए. उन्होंने पत्रकारिता और साहित्य के संगम पर बल देते हुए कहा कि अगर हम पत्रकारिता से साहित्य को निकाल देंगे तो यह एक तरह से मनुष्यता को बाहर निकाल देने की तरह होगा. उद्घाटन सत्र का संचालन हिंदी संपादक अनुपम तिवारी ने किया.
परिसंवाद के प्रथम सत्र की अध्यक्षता हिंदुस्तानी एकेडेमी के अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने की और कुमुद शर्मा, उदय कुमार एवं अवनिजेश अवस्थी ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए. प्रख्यात पत्रकार उदय कुमार ने कहा कि साहित्य ने पत्रकारिता की भाषा को सुधारा है. पत्रकारिता को अगर अपने पुराने संस्कारों को पाना है तो उसे साहित्य का पोषण करना ही होगा. साहित्य हमेशा पत्रकारिता को समाज के प्रति हितकारी और संवेदनशील बनाता है. लोकहित के लिए पत्रकारिता और साहित्य को मिलकर काम करना होगा.
मीडिया विश्लेषक कुमुद शर्मा ने कहा कि समय के साथ दोनों विधाओं ने अपनी समृद्ध परंपराओं को छोड़ दिया है और दोनों ही विधाएँ बड़े मीडिया हाउसों में कैद हो गई हैं. अब उनकी दृष्टि मिशन केंद्रित नहीं बल्कि बाज़ार की ओर है. उन्होंने वर्तमान साहित्य को भी कटघरे में खड़े करते हुए कहा कि साहित्यकारों को सोचना चाहिए कि वे क्या रच रहे हैं और कितना पठनीय है!
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उदय प्रताप सिंह ने कहा कि पत्रकारिता और साहित्य को कभी अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि दोनों एक दूसरे को अनुशासित करते रहे हैं. वर्तमान में दोनों के बीच तालमेल न होने के कारण ये दोनों ही अपने लक्ष्य से भटक गए हैं और समाज को कुछ भी नहीं दे पा रहे हैं. उन्होंने दोनों में आपसी तालमेल की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि संतुलन एवं सहयोग से ही ये दोनों विधाएँ अपनी खोई हुई लोकप्रियता को प्राप्त कर सकती हैं.
परिसंवाद के अंतिम सत्र की अध्यक्षता अनिल कुमार राय ने की और अशोक कुमार ज्योति, जीतेंद्र वीर कालरा, किरण चोपड़ा ने अपने वक्तव्य दिए. सर्वप्रथम मीडिया विश्लेषक अशोक कुमार ज्योति ने कहा कि साहित्य में संवेदना का तत्त्व होता है जबकि पत्रकारिता में घटना का वर्णन. अतः पत्रकारिता हमेशा यथार्थ को प्रस्तुत करती है और साहित्य कल्पना का सहारा लेता है.दोनों ही में ईमानदारी बरतने पर हमेशा ख़तरे बने रहते हैं.
मीडिया विश्लेषक जीतेंद्र वीर कालरा ने कहा कि दोनों माध्यमों में संवेदना और सजगता का संतुलित मिश्रण होना बहुत ज़रूरी है. ‘पंजाब केसरी’ समाचार पत्र से संबद्ध किरण चोपड़ा ने साहित्य और पत्रकारिता के अटूट रिश्ते को रेखांकित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में इन दोनों पर व्यावसायिकता हावी है जबकि एक समय इन दोनों का प्रयोग एक मिशन के रूप में होता था.
सत्र के अध्यक्ष, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति अनिल कुमार राय ने कहा कि वर्तमान में साहित्य और पत्रकारिता के स्वरूप और उद्देश्य दोनों बदल गए हैं और साहित्य तो छोड़िए सजग पत्रकारिता को भी साँस लेने में मुश्किल हो रही है. हमें वर्तमान में साहित्य और पत्रकारिता के नए मानदंड बनाने होंगे.
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ और इसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता और साहित्य विभागों से आए प्राध्यापक, शोधार्थी छात्र-छात्राएँ एवं साहित्यकार व पत्रकार भारी संख्या में उपस्थिति थे. कार्यक्रम के अंत में अरुण कुमार भगत ने धन्यवाद ज्ञापन किया.