नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार पीएम के ड्रीम प्रॉजेक्ट को पलीता लगा रहे हैं उनके बाबू
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रॉजेक्ट माने जाने वाले ‘डीडी किसान’ चैनल की हालत लगातार बद से बद्तर होती जा रही है। चैनल की कार्य संस्कृति को देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि यह मौजूदा सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना है। कुछ दिनों पहले डीडी किसान अफसरशाही की खींचतान के चलते चर्चा में था, अब यह चैनल भयंकर आर्थिक संकट से भी जूझ रहा है।
केंद्र में एनडीए सरकार आने के बाद खेती-किसानी को केंद्र में रखकर लॉन्च किए गए इस चैनल का उद्देश्य किसानों की मूलभूत समस्याओं को केंद्र में रखकर कार्यक्रमों को दिखाने का है। लेकिन, यह चैनल उस कसौटी पर खरा उतरता नहीं दिख रहा है। कुछ पेशेवरों की एक टीम चैनल में कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर रखी गई है, लेकिन यह काफी छोटी है और इसके पास पर्याप्त अनुभव की भी कमी है, जिसके चलते खेती और ग्रामीण विकास से संबंधित कार्यक्रमों को बनाने में समस्या आती है।
चैनल के लिए खेती-किसानी और ग्रामीण विकास पर क्वॉलिटी प्रोग्राम्स तैयार किए जाने की दिशा में अभी सिर्फ एक राउंड मीटिंग (कमिशनिंग) हुई है और वह भी बीते साल अप्रैल 2015 में। डीडी किसान की इस पूरी दुर्दशा के पीछे सीधे तौर पर चैनल की सत्ता हासिल करने को लेकर विवाद ही एक वजह दिखता है। प्रसार भारती और दूरदर्शन के अधिकारियों में डीडी किसान की बागडोर संभालने को लेकर संघर्ष कई बार सतह पर आ चुका है।
चैनल के एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कार्यक्रमों की कमी के चलते कुछ पुराने कार्यक्रम रिपीट किए जा रहे हैं। एक अन्य प्रड्यूसर सीमा कपूर ने बताया, ‘हमने कार्यक्रम तो समय बनाकर चैनल को दे दिए थे और चैनल ने उन्हें टेलिकास्ट भी किया था, लेकिन पेमेंट में देरी क्यों हो रही है इस बारे में चैनल का कोई अधिकारी साफ जवाब देने को तैयार नहीं है।’
अप्रैल 2015 में प्रफेशनल प्रड्यूसर्स से करीब 45 कार्यक्रम मंगाए गए, जिन्हें भविष्य में डीडी किसान पर प्रसारित किया जाना था। इनमें से दो प्रड्यूसर्स ने ऑफर को चैनल की ओर से दिए गए बेहद कम बजट के प्रस्ताव के चलते ठुकरा दिया। इन प्रड्यूसर्स में से सिर्फ 17 को शॉर्टलिस्ट किया गया और उन्हें टाइम स्लॉट देकर उनसे प्रॉडक्शन शुरू करने को कहा गया। बाकी के प्रड्यूसर्स से इंतजार करने को कहा गया।
ये सभी प्रोग्राम सेल्फ फाइनैंस कमिशन्ड (एसएफसी) स्कीम के तहत दिए गए थे। इस स्कीम के तहत इस स्कीम के तहत प्रड्यूसर्स को अपने सोर्सेज से प्रोग्राम के लिए फंड जुटाना होता है और फिर प्रोगाम को बिल के साथ चैनल को देना होता है। इसके बाद चैनल कार्यक्रम का प्रसारण करता है और प्रड्यूसर्स को पेमेंट करता है। एसएफसी स्कीम के तहत प्रड्यूसर को पेमेंट की पहली किस्त कार्यक्रम के पहली बार प्रसारण के तीन महीने के बाद की जाती है। इसका मतलब हुआ कि प्रड्यूसर पहले अपने खर्चे पर प्रोग्राम तैयार करे और फिर पेमेंट के लिए तीन महीने का इंतजार करे। लेकिन असल परेशानी तब शुरू होती है जब तीन महीने बाद भी दूरदर्शन के अधिकारियों की अनदेखी के कारण यह भुगतान शुरू नहीं होता।
डीडी किसान के प्रबंधन ने तो इस इंतजार को तीन महीने से सीधे नौ महीने पहुंचा दिया है। जुलाई 2015 से प्रसारित होकर अपने निर्धारित एपिसोड्स फरवरी- मार्च 2016 में पूरे कर चुके प्रोग्राम्स का अभी तक भुगतान नहीं हुआ है। भुगतान में देरी सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं बल्कि किसी भ्रष्ट मंशा की तरफ भी इशारा करती है। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस रखने वाले प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रॉजेक्ट में अफसरशाही का यह रवैया कई सवाल खड़े करती है।
इस बारे में जब हमने अभिनेता-निर्माता अरुण गोविल से बात की तो उन्होंने कहा, ‘मेरे कार्यक्रमों के उन्होंने 130 एपिसोड दिखाए। मेरी कंपनी का नाम है अरुण गोविल क्रिएशन्स है, जिसका क्रिएटिव हेड मैं ही हूं। डीडी किसान के बाद ‘धरती की गोद में’ कार्यक्रम डीडी वन पर शाम सात बजे दिखाया जाने लगा था। कुछ दिन पहले तक तो चल रहा था, अभी का पता नहीं। कार्यक्रम की पेमेंट में इतना टाइम कभी नहीं लगता है। उन्होंने सिर्फ अक्टूबर तक का पेमेंट किया है, उसके बाद का पेमेंट नहीं हुआ है।
प्रड्यूसर्स के पेमेंट में देरी इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि चैनल के पास अच्छा-खासा फंड था कि वह 31 मार्च को खत्म हो रहे वित्त वर्ष तक इन प्रड्यूसर्स का पेमेंट कर दे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रड्यूसर्स के पेमेंट क्लियर करने की जिम्मेदारी डायरेक्टर जनरल लेवल के अधिकारी की होती है, इस मामले में यह जिम्मेदारी डीडी किसान के एडीजी मनोज कुमार पटैरिया की थी। आरोप है कि अक्टूबर 2015 में फाइल किए गए पेमेंट क्लेम को उन्होंने मार्च 2016 तक लटकाए रखा और वित्त वर्ष खत्म होते ही फंड अपने आप लैप्स हो गया। तब से लेकर अब तक इन प्रड्यूसर्स का इंतजार जारी है।
प्रड्यूसर्स का आरोप है कि सरकार द्वारा नए वित्त वर्ष का बजट जारी होने के दो महीने बाद भी एडीजी मनोज पटैरिया की भुगतान में कोई दिलचस्पी नहीं है। प्रड्यूसर्स के मुताबिक, एडीजी का कहना है कि डीजी दफ्तर से एलओसी यानी लेटर ऑफ क्रेडिट नहीं आने की वजह से चैनल के पास फंड ही नहीं आया है। डीजी दूरदर्शन के पद पर फिलहाल स्थाई नियुक्ति नहीं हुई है। पिछले कुछ महीनों से अपर्णा वैश्य और अभी उनके छुट्टी पर जाने के कारण दीपा चंद्रा यह कार्यभार देख रही हैं। हमने एडीजी मनोज पटैरिया और दीपा चंद्रा से बात करने की कई बार कोशिश की, लेकिन पिछले चार दिनों से उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया।
(साभार: नवभारत टाइम्स)