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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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गोपाल शर्मा की गालियां और जिंदगी का साठवां साल

उनकी पहली किताब ‘बंबई दर बंबई’  का भी विमोचन

निरंजन परिहार / गोपाल शर्मा के बारे में बरसों से खुद से सवाल कर रहे मुंबई के मीडिया जगत ने हिंदी के इस लाडले पत्रकार का 60वां जन्मदिन मनाया रविवार के दिन, 28 अक्टूबर 2012 को। मुंबई के गोपाल शर्मा... वरिष्ठ पत्रकार। जाने माने स्तंभ लेखक और भाषा की जबरदस्त शैली व शिल्प के कारीगर। उम्रदराज होने के बावजूद मन बिल्कुल बच्चों सा। आदत औघड़ सी और जीवन फक्कड़ सा। बहुत लिखा। जमकर लिखा। कभी किसी का सहारा नहीं लिया। फिर भी खुद कईयों का सहारा बने। संपादक से लेकर हर पद पर काम किया। कई संस्थानों में रहे। और जितनी जगहों में काम किया, उनसे ज्यादा को छोड़ दिया। छोड़ा इसलिए क्योंकि उन संस्थानों को उनने अपने योग्य माहौलवाला नहीं माना।

पर, इतने भर से गोपाल शर्मा का परिचय पूरा नहीं हो जाता। गोपाल शर्मा का असली तब पूरा होता है, जब उनके बारे में दुनिया को यह बताया जाए कि वे मुंबई के एकमात्र ऐसे पत्रकार हैं, जिनके जो मन में आया बोल दिया। जैसा आया बोल दिया। मुंहफटगिरी में उनका कोई जवाब नहीं। मुंहफटाई भी ऐसी कि जैसे दुनिया में हर एक की सारी मां-बहनों की जनम कुंडली उन्ही के पास हों। कोई भी उनसे बच नहीं पाया। क्या मालिक और क्या संपादक। सारे के सारे एक कतार में। अभी कुछेक साल से पत्रकारिता में आए नए लोगों को छोड़ दिया जाए, तो मुंबई में शायद ही तो कोई पत्रकार हो, जिसके लिए गोपाल शर्मा के श्रीमुख से ‘फूल’ ना झरे हों। उनसे पहला परिचय हो या पहली बातचीत। गोपाल शर्मा की शुरूआत ही उनके मुंह से झरनेवाले खूबसूरत ‘फूलों’ से होती है। तब भी और अब भी। कुछ भी नहीं बदला। इतने सालों बाद भी वे जस के तस हैं। उनने ताऊम्र व्यक्तिगत उलाहनों से लेकर भरपूर गालियों के प्रयोग करते हुए लोगों से व्यवहार किया। लेकिन फिर भी यह सबसे बड़ा सवाल है कि वे ही लोग आखिर इस शख्स को इतना प्यार क्यों करते हैं। वे लोग, जिनने गोपाल शर्मा की गालियां खाई और पिटाई झेली, वे ही उनसे इतना स्नेह क्यों करते हैं। यह सबसे बड़ा सवाल रहा है। सवाल यही आज भी है और कल भी रहेगा।

वे गजब के लेखक हैं। अपनी विशिष्ट मारक भाषा शैली में किसी की भी खाल उधेड़ने में उनका कोई सानी नहीं। तो, उनकी बराबरी का रिपोर्ताज लिखनेवाला कोई आसानी से पैदा नहीं होता, यह भी सबको मानना पड़ेगा। जब लिखते हैं, तो इतना डूबकर लिखते हैं कि पढ़नेवाला चिंतन करने लगता है कि ये गोपाल शर्मा कोई आदमी है या इनसाइक्लोपिडिया। हर पहलू को छानकर अगल - बगल की गहरी पड़ताल के साथ सारी बातों के तकनीकी तथ्यों और संपूर्ण सत्य के साथ पेश करना उनके लेखन की खासियत है। साढे चार सौ से ज्यादा कविताएं लिखीं। एक हजार से भी ज्यादा कहानियां भी लिखी। सारी की सारी देश की नामी गिरामी पत्र पत्रिकाओं में छपी। लेकिन इस सबका गोपाल शर्मा का कोई दर्प नहीं। कभी उन्होंने खुद को साहित्यकार नहीं समझा। गजब की भाषा शैली और बेहद गहराईवाला लेखन करनेवाले गोपाल शर्मा को एक चलता फिरता ज्ञानकोष कहा जा सकता है। लेकिन बाबा आदम की औलाद की एक जो सबसे बड़ी कमजोरी है कि वह यही है कि हम किसी के भी सिर्फ एक पहलू को पकड़कर उसी के जरिए किसी का भी चित्रण करते रहते है। गोपाल शर्मा के बारे में ज्यादातर लोग सिर्फ यही जानते हैं कि उनने जितना लेखन को जिया हैं, उसमें ज्यादातर वक्त शराब को दिया है। बहुत सारे लोग शुरू से लेकर अब तक उनके जीवन की रंगीनियों वाले पहलू का परीक्षण करते हुए तब भी और आज भी उन पर मरनेवालियों की लंबी चौड़ी संख्या गिनाकर भी उनके चरित्र का चित्रण करते रहते हैं। पर, इस सबके बावजूद गोपाल  शर्मा कुल मिलाकर एक बेहतरीन लेखक, जानकार पत्रकार और लगातार लेखन करनेवाले जीवट के धनी आदमी हैं, जिनमें आदमियत भी ऊपरवाले ने कूट कूट कर भरी है।

गोपाल शर्मा के 60वें जन्मदिन पर घाटकोपर के रामनिरंजन झुंझुनवाला कॉलेज के सभागार में उस दिन वे सारे चेहरे थे, जो कभी ना कभी गोपाल शर्मा के निशाने पर रहे। ‘वाग्धारा’ द्वारा आयोजित गोपाल शर्मा के साठवें जन्मदिन के आयोजन में वागीश सारस्वत, अनुराग त्रिपाठी, और ओमप्रकाश तिवारी की विशेष भूमिका रही। मंच पर थे दोपहर का सामना के कार्यकारी संपादक प्रेम शुक्ल, वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल, जगदंबाप्रसाद दीक्षित और आलोक भट्टाचार्य के अलावा गोपाल शर्मा की पत्नी प्रेमा भाभी। गोपाल शर्मा तो थे ही। कईयों ने गोपाल शर्मा के साथ अपने अनुभव सुनाए तो कुछ ने उनके चरित्र की चीरफाड करके उनके मन के अच्छेपन को सबके सामने पेश किया। बहुत सारे वक्ताओं ने प्रेमा भाभी को उनकी संयम क्षमता, उनके धीरज और उनकी दृढ़ता पर बधाई देते हुए कहा कि मीडिया जगत के बाकी लोग तो सार भर में एकाध बार गोपाल शर्मा को झेलते रहे, पर प्रेमा भाभी ने जिस धैर्य को साथ उनको जिया, वे सचमुच बधाई की पात्र हैं। जो लोग मंच से बोले, वे सारे के सारे गोपाल शर्मा की गालियां खा चुके हैं, फिर भी उनके बारे में अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा बोल रहे थे। गोपाल शर्मा के बारे में अपन भी बोले। उनके शरारती व्यवहार और मोहक अंदाज के अलावा फक्कड़पन पर बोले। सबने उनकी तारीफ की। जो जीवन भर गोपाल शर्मा को गालियां देते रहे, उनने भी गोपालजी कहकर अपनी बात शुरू की। सम्मान दिया। उनके व्यक्तित्व की व्याख्या की। और कृतित्व की तारीफ की। किसी ने उनको फक्कड़ कहा। किसी ने औघड़। किसी ने गजब का आदमी बताया। तो किसी ने उनके भीतर बैठे बच्चों जैसे आदमी को दिखाया। कुल मिलाकर यह आयोजन गोपाल शर्मा के पत्रकारीय कद की एक महत्वपूर्ण बानगी रहा। खचाखच भरा हॉल देखकर अनुराग त्रिपाठी ने कहा कि गोपाल शर्मा ने जीवन भर लोगों के साथ जैसा व्यवहार किया, उसको देखकर शक था कि लोग आएंगे भी या नहीं। पर....., वाह गोपालजी... आपके जन्मदिन पर साबित हो गया कि लोग आपको बहुत स्नेह करते हैं... बहुत प्यार करते हैं। इस मौके पर उनकी पहली किताब ‘बंबई दर बंबई’  का विमोचन भी हुआ। वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष अवस्थी, बृजमोहन पांडे, सुमन सारस्वत, सरोज पांडे, निजामुद्धीन राईन, अनिल गलगली आदि तो थे ही। मुंबई के हिंदी पत्रकारिता जगत के और भी कई नए पुराने नामी लोग हाजिर थे, गोपाल शर्मा का साठवां जन्मदिन मनाने के लिए। किसी को अपनी यब हात अतिश्योक्ति लगे तो अपनी बला से, पर सच्चाई यही है कि मुंबई की हिंदी पत्रकारिता का एक पूरा युग गोपाल शर्मा के कर्मों और सत्कर्मों का तो ऋणी है ही उनके धतकर्मों का भी ऋणी है। उनके जन्म दिन के इस आयोजन में यह भी साबित हो गया। गोपाल शर्मा जैसा दूसरा कोई ना तो हुआ है और ना ही होगा। हो तो बताना।

(लेखक मुंबई के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

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सम्पादक

डॉ. लीना