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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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कन्नड और हिंदी साहित्य में हैं एकता के सूत्र: मधुसूदन साईं

श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सीलेंस के चांसलर श्री मधुसूदन साईं ने किया 'मीडिया विमर्श' के 'कन्नड मीडिया विशेषांक' का लोकार्पण

बेंगलुरु। जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित देश की प्रतिष्ठित पत्रिका 'मीडिया विमर्श' के 'कन्नड मीडिया विशेषांक' का लोकार्पण बेंगलुरू में श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सीलेंस के चांसलर श्री मधुसूदन साईं ने किया। इस अवसर पर पत्रिका के सलाहकार संपादक एवं भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी एवं डॉ. राकेश उपाध्याय भी उपस्थित थे।

पत्रिका का लोकार्पण करते हुए श्री मधुसूदन साईं ने कहा इस विशेषांक में कन्नड मीडिया और संस्कृति के कई आयामों की जानकारी मिलती है। कन्नड और हिंदी भाषा में एकता के कई सूत्र हैं। कन्नड और हिंदी साहित्य में भी एकता के कई सूत्र मिलते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रिकाओं के ऐसे विशेषांकों से भारतीय संस्कृति में एकात्मकता का बोध होता है। इस विशेषांक के माध्यम से हिंदी पाठकों को कन्नड मीडिया के विभिन्न आयामों के बारे में जानने और सांस्कृतिक एकात्मकता के अंतःसूत्र को समझने का अवसर मिलता है। 

'मीडिया विमर्श' के सलाहकार संपादक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि कन्नड पत्रकारिता और मीडिया की व्यापक दुनिया है। इससे अवगत होने का मौका हिंदी पाठकों को इस विशेषांक के माध्यम से मिलेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में अंतर-संवाद की परंपरा को 'मीडिया विमर्श' ने अपने उर्दू पत्रकारिता विशेषांक, गुजराती पत्रकारिता विशेषांक, तेलुगू मीडिया विशेषांक, मलयालम मीडिया विशेषांक और तमिल मीडिया विशेषांक के माध्यम से लगातार आगे बढ़ाया है। 'मीडिया विमर्श' का कन्नड मीडिया विशेषांक इस दिशा में एक और प्रयास है। कन्नड मीडिया के इतिहास, विकास, पत्रकारिता और सिनेमा के मूल्यांकन एवं विश्लेषण के माध्यम से भारतीय भाषाओं में अंतर-संवाद की यह परंपरा सार्थक होगी।

'मीडिया विमर्श' के 'कन्नड मीडिया विशेषांक' में कन्नड पत्रकारिता का इतिहास, कन्नड सिनेमा, टीवी, रेडियो, वेब आदि कन्नड मीडिया के विभिन्न आयामों पर केंद्रित आलेखों का प्रकाशन

हुआ है। इस विशेषांक में कुल 27 आलेखों में से 21 हिंदी में और 6 अंग्रेजी में हैं। आलेख कर्नाटक के कई विद्वानों ने लिखे हैं। विशेषांक के अतिथि संपादक डॉ. सी. जय शंकर बाबु हैं।

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सम्पादक

डॉ. लीना