इमेजिन फोटो जर्नलिस्ट सोसायटी की ओर से आयोजित हुआ एक दिवसीय जयपुर फोटो जर्नलिज्म सेमिनार, देश-प्रदेश के वक्ताओं ने खुलकर की फोटो जर्नलिज्म और पत्रकारिता पर बात
जयपुर। एक अच्छा फोटो वह होता है, जो पाठक को अंदर तक सोचने पर मजबूर कर दे। जो तूफान ना ला सके, वो फोटो किस काम का। यह कहना है अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फोटो जर्नलिस्ट और फॉच्र्यून के इंडिया के फोटो एडिटर बंदीप सिंह का। इमेजिन फोटो जर्नलिस्ट सोसायटी की ओर से जेएलएन मार्ग स्थित एमएनआईटी के प्रभा भवन ऑडिटोरियम में उन्होंने यह बात कही। उन्होंने कहा कि देश में जितनी जनसंख्या है, उतनी ही सोशल साइट पर फोटो अपलोड हो रही हैं। हम सोशल साइट के जरिए दुनिया देख रहे हैं, नए-नए पड़ोसी बना रहे हैं। यह एक फोटो की ताकत है। अब फोटोग्राफ चॉइस नहीं, हैबिट है। स्मार्टफोन ने फोटोग्राफी को हर जगह पहुंचाया है। ये तकनीक का कमाल है कि अब फोटो एप के जरिए खूबसूरत बना दी जाती है। आज फोटोग्राफी पर डिस्कस करने की जरूरत है। एक फोटोग्राफ में विजुअल बहुत जरूरी है।
इससे पूर्व इमेजिन फोटो जर्नलिस्ट सोसायटी की ओर से जेएलएन मार्ग स्थित एमएनआईटी के प्रभा भवन ऑडिटोरियम में आयोजित हुई एक दिवसीय जयपुर फोटो जर्नलिज्म सेमिनार का उद्घाटन अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। स्वागत भाषण धर्मेंद्र कंवर ने दिया। कार्यक्रम के अगले सत्र को संबोधित करते हुए इंडिया टुडे के एसोसिएट एडिटर रोहित परिहार ने कहा कि फोटोग्राफी आज सबसे पसंदीदा शौक है। पत्रकारिता में कई बार फोटो का चयन करना बहुत बड़ी समस्या बन जाता है। हर संपादक इस समस्या को फेस करता है। फोटो खबर की जान होते हैं। एक से अधिक फोटो अच्छी खबर को और अधिक प्रभावी बनाते हैं।
पत्रकारिता के बारे में सोचना होगा: वरदराजन
सेमिनार के अगले सत्र में द फाउंडर के एडिटर और इंडियन-अमेरिकन पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि हमें आज पत्रकारिता के बारे में सोचना होगा। सामाजिक न्याय के नजरिए से ना सहीं, पर एक सोच के नजरिए से हम देखें कि आज बड़े घरानों में क्या वाकई में पत्रकारिता हो रही है? क्या हमें खबर वाकई खबर के रूप में मिल पा रही है? फोटो जर्नलिज्म को और बेहतर बनाने के लिए आज हिंदुस्तान को एक नए नजरिए की जरूरत है। हमें अब पत्रकारिता में एक बार फिर ईमानदारी को तलाशना होगा। पब्लिक वैल्यूज हर जगह होते हैं, उन्हें हमें हर हाल में खोजना होगा।
केवल नकारात्मक खबर पत्रकारिता नहीं: डॉ. सिंह
अगले सत्र को संबोधित करते हुए एसएमएस कॉलेज के असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट डॉ. अजीत सिंह ने कहा कि हर बार नकारात्मक खबर को अधिक तवज्जो देना पत्रकारिता नहीं है। पत्रकारिता का आशय सकारात्मक खबरों से भी है। हमें आज के अखबारों और न्यूज चैनल्स के कंटेंट पर सोचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पाठक-दर्शक केवल अपराध और राजनीति की खबरों को ही देखना-पढऩा नहीं चाहते। उन्हें सामाजिक सरोकारों से जुड़ी खबरों की भी चाहत है, जो आज की पत्रकारिता से लगभग गायब सी हो गई हैं। कलम समाज का निर्माण करने का भी जरिया है, हम इस बात को झुठला नहीं सकते। वहीं दैनिक नवज्योति के स्थानीय संपादक महेश शर्मा ने कहा कि फोटो हर तरह की पत्रकारिता का अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि किसी घटना खासकर संवेदनाओं को कैमरे में कैद करना बहुत मुश्किल काम है। ये बात भी सच है कि आज स्पेस की भारी कमी है, फिर भी फोटो को जगह मिलती ही है। उन्होंने माना कि आज जयपुर को फोटो जर्नलिज्म की पढ़ाई कराने वाले संस्थान की भी जरूरत है, ताकि नई पीढ़ी इसमें भी आगे आ सके।
फोटो खींचने की कला महत्वपूर्ण: पुरोहित
सेमिनार के अगले सत्र को संबोधित करते हुए डेली न्यूज के संपादक संदीप पुरोहित ने कहा कि फोटो खींचने की कला बहुत महत्वपूर्ण कला है, इसका स्पेस कभी कम नहीं हो सकता। जहां एक ओर फोटो खींचना हुनर है, वहीं दूसरी और एक संपादक का फोटो चयन करना भी किसी हुनर से कम नहीं है। कई बार फोटो सलेक्शन करना बहुत मुश्किल हो जाता है। कई बार स्पेस की कमी के चलते छह कॉलम की फोटो को तीन कॉलम में लगाना मजबूरी हो जाती है। पुरोहित ने दुनिया के नामचीन फोटोग्राफर्स का जिक्र करते हुए कहा कि उनके खींचे गए फोटो आज भी चर्चा का विषय बने हुए हैं। ये किसी कला और कलाकार का हुनर होता है, जो हमेशा बोलता है। उन्होंने कहा कि मानवीयता अपनी जगह सही है और प्रोफेशनलिज्म अपनी जगह। हम दोनों ही पक्षों को नकार नहीं सकते। आज सोशल मीडिया अगर ताकत बना हुआ है तो उसकी सबसे बड़ी वजह फोटो हैं। फोटो के बिना सोशल मीडिया की ताकत उसका दसवां हिस्सा भी नहीं है। बकौल पुरोहित, फोटो के भीतर भी कई तस्वीरें छिपी होती हैं।
बदली न्यूज रूम की तस्वीर: मुद्गल
वहीं दिल्ली से आए सीएसडीए के पब्लिक प्रोग्राम के निदेशक विपुल मुद्गल ने कहा कि आज टेक्नोलॉजी सभी को प्रभावित करती है। मीडिया इस तकनीक और जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। समाज तेजी से बदल रहा है, हमें उसका हिस्सा बनना होगा। हर हाल में ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए, इससे सोच में बदलाव आएगा और जागरुकता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि आज मीडिया कुछ ही घरानों तक सीमित है। कुछ ही हाथों में पूरी मीडिया आ गई है। अब न्यूज रूम की तस्वीर बदल गई है। हमें इन बदलावों पर पैनी नजर रखनी होगी और अपनी असमर्थता भी जतानी होगी। वहीं कैमरे की तकनीक पर भी चर्चा होनी चाहिए।
पिक्चर के बिना जीवन अधूरा: पंजीर
अगले सत्र में ख्यातिनाम फोटो जर्नलिस्ट प्रशांत पंजीर ने कहा कि पिक्चर के बिना पत्रकारिता ही नहीं, जीवन भी अधूरा है। उन्होंने नेपाल भूकंप पर आधारित फोटो प्रजेंटेशन के जरिए वहां के दर्द एवं मानवीय संवदेनाओं पर भी बात की। उन्होंने भूकंप की भयावहता को प्रदर्शित करते हुए कहा कि एक कहानी को कहने के लिए एक फोटो पर्याप्त है। उन्होंने कहा कि फोटो और स्टोरी का प्रभाव इतना शक्तिशाली होता है कि वह पूरी दुनिया को बदल सकता है। उन्होंने फोटो और खबर का हवाला देते कई मुद्दों को समझाया।
फोटो बिना पत्रकारिता नहीं: पेंडनेकर
वहीं जर्नलिस्ट सतीश पेंडनेकर ने कहा कि फोटो और पत्रकारिता को चोली-दामन का साथ है। उन्होंने कहा कि केवल इवेंट की फोटो नहीं होती, खबरों की भी फोटो होती हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि फोटो जर्नलिज्म संकट में है, पर मेरा मानना है कि फोटो जर्नलिज्म कभी संकट में हो ही नहीं सकती। फोटो के बिना अखबार कभी भी अच्छा नहीं बन सकता। जब तक अखबार-मैगजीन हैं, तब तक फोटो जर्नलिज्म भी रहेगी। उन्होंने विकास पत्रकारिता पर बात करते हुए कहा कि विकास हमेशा से राजनीति का हिस्सा नहीं रहा। जब से लोकतांत्रिक चेतना आई है, तब से विकास हमारी राजनीति का हिस्सा बन पाया है। अब विकास की पत्रकारिता बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। वहीं फोटो जर्नलिज्म कही रिसर्च स्कॉलर सी.पी. रश्मि ने फोटो पत्रकारिता पर पेपर प्रजेंट किया। कार्यक्रम के समापन पर कार्यक्रम के निदेशक पुरुषोत्तम दिवाकर और कार्यक्रम समन्वयक प्रीति जोशी ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में जयपुर के विभिन्न कॉलेजेज के स्टूडेंट्स ने न केवल भागीदारी की, बल्कि वक्तओं से सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासाओं को भी शांत किया।