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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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उर्दू पत्रकारों की दक्षता पर कार्यशाला

पटना में पहली बार इस तरह का आयोजन 

सुरैया जवीं/ पटना। नेशनल काउंसिल फॉर प्रोमोशन ऑफ उर्दू लैंगुएज (NCPCUL) की ओर से पटना में मौलाना मजहरूल हक विश्वविद्यालय की सहायता से उसी के परिसर में उर्दू पत्रकारों में दक्षता के सृजन पर पाँच दिनों की कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य समाचार की अवधारणा एवं लेखन तकनीकि के बारे में उर्दू पत्रकारों को जानकारी देना था। समाचार क्या है ? एक समाचारपत्र के लिए समाचार कैसे एकत्रित किये जाते हैं, समाचार का महत्व और लेखन की तकनीकि के बारे में विस्तार से बताया गया। पत्रकारिता के द्वारा समाचार, सूचना और जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है। ये मानव की उस ख्वाहिश को पूरा करता है जिसके तहत वह हर नई बात जानने के लिए उत्सुक रहता है, लेकिन पत्रकारिता सिर्फ सूचना ही नहीं देती बल्कि किसी समस्या पर जनमत तैयार करती है। इसके द्वारा जनमत को प्रभावित करने का काम भी लिया जाता है। समाज में शांति व्यवस्था बनाये रखने में सहयोग भी देती है और जनता के अधिकार की सुरक्षा करती है। समाचार की अवधारणा एवं लेखन तकनीक का मीडिया में महत्वपूर्ण स्थान है। चाहे वह संवाददाता हो या उपसंपादक उसे समाचार की अवधारणा और उसकी तकनीक से अच्छी तरह परिचित होना जरूरी है।

हमारे देश के विशाल और विकासशील समाज में आज मिडिया के प्रत्येक क्षेत्र का विस्तार हो रहा है। पत्र-पत्रिकाओं के पाठक की संख्या बढ़ रही है। रेडियों, टीवी चैनलों की संख्या भी प्रतिदिन बढ़ रही है। लेकिन आज भी समाचार मीडिया में अनेक गंभीर मुद्दों को नासमझी के साथ प्रस्तुत किया जाता है। इन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। एक पत्रकार को चाहिए की वह सच्चाई के लिए हमेशा तत्पर रहें। वह जिस विषय पर लिखे उस पर लेखन निष्पक्ष हो। मानवता की बेहतरी के लिए हो। इस तरह से देखा जाए तो इसपर समाज की बड़ी जिम्मेवारी होती है। सामाजिक जिम्मेवारियों के साथ-साथ एक कानूनी जिम्मेवारी भी होती है। जैसे- निराधार बातों से हमेशा बचना चाहिए। जिससे स्वयं और उसके संस्थान की बदनामी न हो। ये सही है कि समाचार-पत्र एक व्यवसाय का रूप धारण कर चुका है। लेकिन अन्य व्यवसायों के मुकाबले में ये बिल्कुल अलग तरह का पेशा है। क्योंकि इससे जनता का एक बड़ा वर्ग प्रभावित होता है।

उर्दू पत्रकारिता में काफी चुनौतियाँ है। उर्दू पत्रकारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनके पास संसाधान की काफी कमी है। फिर भी शुरूआती दौर में समाचार पत्रों का प्रसार कम था इसलिए इसके प्रभाव कम थे। आज इसका दायरा काफी बढ़ चुका है। इसलिए अब इसका प्रसार भी बढ़ चुका है। उर्दू पत्रकारों को नई पीढ़ी को भाषा से अवगत कराने के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि देश का भविष्य नई पीढ़ी पर निर्भर करता है। अगर अपनी मादरी भाषा से वह दूर होंगें या दिलचस्पी नहीं रखेंगे तो उर्दू पत्रकारिता काफी पिछे चली जायेगी। अगर हम इतिहास के पन्नों को उलटेगें तो आप देखेंगे कि पत्रकारिता ने स्वतंत्रता के लिए आंदोलन को वह ताकत दी की फिरंगियों के पैर उखड़ गये और उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा। इसके लिए पत्रकारों को जेल भी जाना पड़ा, लेकिन इनके इरादे में जरा भी फर्क नहीं पड़ा। सच्चाई और बेबाकी को हमेशा अपनाये रखा। आज भी ऐसे भी पत्रकारों की जरूरत है जो अपने कर्तव्य को समझें और जनता की इसी तरह अगुवाई करें। वह देशद्रोही की बजाय देश से सच्ची मुहब्बत कर सके, और इनमें इतनी ताकत पैदा हो सके  कि वह गलत तत्व से लोहा ले सके। देश में शांति व्यवस्था का माहौल कायम करने की कोशिश करे जो आज वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है।

इन्हीं बारीकियों की जानकारी के लिए पटना में पाँच दिवसीय पत्रकारों की दक्षता के लिए एनसीपीयूएल नई दिल्ली के सौजन्य से मौलाना मजहरूल हक अरबी व फारसी विश्वविद्यालय में संयुक्त रूप से कार्यशाला का आयोजन किया था। जिसमें प्रत्येक दिन चार क्लास की व्यवस्था की गई। जिसमें न्यूज रिपोटिंग से लेकर प्रोडक्शन और प्रिटिंग की जानकारी दी गई जिसमे कई जाने-माने अनुभवी पत्रकारों ने अपने अनुभव से अवगत कराया। नेशनल काउंसिल फॉर प्रोमोशन ऑफ उर्दू लैंगुएज के निदेशक ख्वाजा एकरामुद्दीन, उपाध्यक्ष मोजफ्फर हुसैन ने नई तकनीकि से उर्दू अखबारों को दूसरे अखबारों के मुकाबलें में गुण बताये।

इस तरह का आयोजन पटना में पहली बार हुआ है। इसके निदेशक का यह कदम बहुत ही सराहनीय है।

 

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सम्पादक

डॉ. लीना