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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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अखबार छापने वाले वर्षों से हैं लगातार धरने पर

अखबारी दुनिया भी नहीं लेती खबर

लीना / लगभग साढ़े चार साल से टाइम्स ऑफ इंडिया, पटना अखबार को छापने वाले हडताल पर है। जी हां, पटना शहर के मध्य स्थित टाइम्स ऑफ इंडिया के कार्यालय के सामने फुटपाथ पर बैनर लगा आज भी अपने को निकाले जाने के विराध में धरने पर बैठे हैं। प्रिंट्रिग प्रेस के ये निकाले गए कर्मी 16 जुलाई 2011 से प्रिंटिंग प्रेस को बंद करने और उन्हें हटाये जाने के खिलाफ लगातार धरने पर हैं। शायद ही कोई इतना लंबा धरना अखबारी दुनिया में चला हो। हैरत की बात यह है कि इनके धरने से देश का मीडिया ही नहीं बल्कि बिहार का अखबारी दुनिया भी बेखबर है।

धरना पर बैठे कर्मियों का कहना है कि टाइम्स ऑफ इण्डिया, पटना संस्करण 15 जुलाई 2011 तक कुम्हरार स्थित टाइम्स समूह के प्रिंटिग प्रेस में ही छपा था, लेकिन 16 जुलाई 2011 का टाइम्स  ऑफ इण्डिया टाइम्स हाउस के अपने प्रिंटिंग प्रेस की बजाय प्रभात खबर के प्रिंटिंग प्रेस से क्यों छपने लगा? यही नहीं अखबार समूह ने बिना सूचना के प्रिंटिंग प्रेस बंद कर दिया।

और फिर टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रबंधन ने अपने कार्यरत इन कर्मचारियों को कोई सूचना दिए बिना अचानक सेवामुक्त भी कर दिया। टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रिंटिंग प्रेस को गैर कानूनी तरीके से बंद किये जाने से अचानक 44 कर्मचारी छंटनीग्रस्त होकर सड़क पर आ गए।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी 2011 और 11मार्च 2011 को टाइम्स कर्मियों की याचिका के सन्दर्भ में टाइम्स समूह को यथास्थिति (स्टेटस को ) बनाये रखने का निर्देश दिया था। माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा यथास्थिति बनाये रखने के निर्देश के बावजूद याचिकाकर्ता यूनियन के कर्मचारियों को सेवामुक्त करने के लिए प्रिंटिंग प्रेस को बंद करने का निर्णय माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना के तौर पर देखा गया था। स्मरण हो कि 1995 में टाइम्स समूह के स्वामी समीर जैन ने पटना स्थित नवभारत टाइम्स को बेवजह बंद कर दिया था, जिस से 250 पत्रकार -गैर पत्रकारों की छंटनी हो गयी थी।

टाइम्स ऑफ इण्डिया के छंटनीग्रस्त कर्मचारी आज भी टाइम्स ऑफ इण्डिया पटना के फ्रेजर रोड स्थित पटना कार्यालय के सामने धरने पर बैठे हैं,  पर बिहार के किसी मीडिया समूह के लिए यह कभी भी प्रकाशन योग्य समाचार नहीं है। टाइम्स ऑफ इण्डिया इम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष (सदस्य, भारतीय प्रेस परिषद) अरुण कुमार ( अब दिगवंत) लगातार इनके लिए संघर्ष करते रहे थे इसके सचिव लाल रत्नाकर और नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने भी पटना के टाइम्सकर्मियों के आन्दोलन को अपना समर्थन दिया था।

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना