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‘शिक्षा ही राष्ट्र निर्माण का सर्वोत्तम माध्यम:स्वांत रंजन

राष्ट्रीय उत्थान एवं गुरु-शिष्य परम्परा’ विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार

महू (इंदौर). ‘शिक्षा ही राष्ट्र निर्माण का सर्वोत्तम माध्यम है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से वर्तमान एवं भविष्य के भारत के निर्माण का रास्ता प्रशस्त होगा. यह हमारा सौभाग्य है कि यह कार्य करने का अवसर हमें मिला.’ यह बात व्यास पूजन कार्यक्रम के अवसर पर ‘राष्ट्रीय उत्थान एवं गुरु-शिष्य परम्परा’ विषय पर आयोजित वेबीनार को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री स्वांत रंजन ने कहा. श्री रंजन ने आगे गांधीवादी विचारक डॉ. धर्मपाल का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने तथ्यों और आंकड़ों के साथ लिखी अपनी किताब में बताया है कि अंग्रेजी शासन के पहले भारत के प्रत्येक गांव में पाठशाला हुआ करती थी जिसका संचालन ग्रामवासी किया करते थे लेकिन अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा पद्धति को समाप्त कर क्लर्ककीयल शिक्षा में बदल दिया. इस शिक्षा पद्धति में बदलाव का समय आ गया है. उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देश के लिए शुभ बताया. इस राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था.

वेबीनार को संबोधित करते हुए भारतीय शिक्षा मंंडल की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती अरूणा सारस्वत ने कहा कि मैं राष्ट्रीय उत्थान नहीं, पुर्नउत्थान की बात करूंगी. उन्होंने कहा कि गुरु-शिष्य परम्परा शिक्षा का आधार रही है. जब शिक्षा अहम से वयम  की ओर ले जाती है तब वह दिशा देने में सक्षम हो जाती है. उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कहूंगी कि शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य हुआ, वह सही नहीं था लेकिन कुछ कालखंड में शिक्षा के स्तर में अवनति हुई है. शिक्षा को डिग्री से जोड़ दिया गया है और आजीविका का साधन बना दिया गया है. उन्होंने कहा कि एक नेरेटिव सेट किया जा रहा है, इस नेरेटिव को तोडऩा हमारा काम है. उन्होंने कहा कि हमें गुरु शिष्य परम्परा की ओर लौटना होगा. इसके पूर्व वेबीनार को संबोधित करते हुए भारतीय शिक्षण मंडल की मालवा प्रांताध्यक्ष डॉ. ज्योति उपाध्याय ने गुरु-शिष्य की गौरवशाली परम्परा का उल्लेख करते हुए तीन पौराणिक उदाहरण प्रस्तुत किया. गुरु-शिष्य की सनातन परम्परा हमारे समाज में है. अध्ययन शाला, ब्राउस की डीन डॉ. मनीषा सक्सेना ने कहा कि हमारी सनातनी परम्परा में हमेशा से गुरु को संरक्षक का दर्जा दिया गया है. उन्होंने कहा कि गुरु-शिष्य परम्परा में बेटियों को आगे नहीं बढ़ाया गया, यह एक बड़ी कमी थी. उन्होंने विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा शक्ति का स्वरूप होती है.. 

वेबीनार के आरंभ में डीन प्रोफेसर डीके वर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति से हम पुन: विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त कर पाएंगे. उन्होंने वामपंथी विचारधारा के शिक्षा का स्वरूप नष्ट हुआ है. उन्होंने कहा कि वामपंथी राष्ट्र और देश के अंतर को नहीं समझते हैं. गुरु-शिष्य परम्परा को रेखांकित करते हुए प्रो. वर्मा ने कहा कि गुरु अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करते हैं. वेबीनार की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने सारस्वत अतिथियों का स्वागत किया. परम्परानुसार एडव्होकेट श्री नरेश मिश्र ने ध्येय वाक्य का वाचन किया. वेबीनार के अंत में कुलसचिव ब्राउस ने अतिथियों का आभार माना और कहा कि कुलपति प्रो. आशा शुक्ला के मार्गदर्शन में ऐसे सारस्वत आयोजन विश्वविद्यालय में हो रहा है. कार्यक्रम के संयोजक डॉ. मनोज कुमार गुप्ता एवं सह-संयोजक डॉ. अजय दुबे के अथक प्रयासों एवं विश्वविद्यालय परिवार के सहयोग से वेबीनार का सफल आयोजन सम्पन्न हुआ.

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सम्पादक

डॉ. लीना