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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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लेखन छोड़ना मेरे लिए असंभव : मधुकर सिंह

"मधुकर सिंह सम्मान समारोह" में हिन्दी साहित्य जगत की कई मशहूर हस्तियों का जुटान

आरा । कथाकार मधुकर सिंह सम्मान समारोह के लिए हिन्दी साहित्य जगत की कई मशहूर हस्तियों का जुटान रविवार को यहां हुआ।

समारोह में जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव प्रणय कृष्ण ने मधुकर सिंह को मानपत्र, शाल व पच्चीस हजार रूपये का चेक देकर सम्मानित किया। मधुकर सिंह के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर बोलते हुये प्रणय कृष्ण ने कहा कि मधुकर का साहित्य मेहनतकश किसानों, श्रमिकों, गरीबों, औरतों, दलित वंचितों के क्रांतिकारी आंदोलन की आंच से रचा गया है। वे हिन्दी के प्रगतिशील जनवादी कथा साहित्य के महत्वपूर्ण स्तम्भ है उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु की परंपरा को आगे बढ़ाया है।

अपने उद्गार मे साहित्यकार मधुकर सिंह ने कहा कि मैं अभी भी लिखता हूँ। और आज भी मेरी रचनाएँ पत्रिकाओं मे छपती हैं। लेखन छोड़ना मेरे लिए असंभव है।

आरा के नागरीय प्रचारणीय सभागार में देश व विदेश के मशहूर साहित्यकार, नाट्यकर्मी, शिक्षक तथा कलाकार पहुंचे। समारोह में “कथाकर मधुकर सिंह साहित्य में लोकतंत्र की आवाज” विषय पर विचार गोष्ठी भी हुई।

कवि कृष्णदेव कल्पित ने कहा कि कथाकार ने अपने लेखन में गरीब मेहनतकश जनता की पीड़ा को व्यक्त किया है। रंगकर्मी राजेश कुमार ने कहा कि उनकी लेखनी से भोजपुर अभिजात्य व सामन्ती समाज के खिलाफ रंगकर्म की धारा फूटी। मदन मोहन ने बताया कि मधुकर जन सांस्कृतिक आंदोलन के हमसफर रहें हैं।

श्रीराम तिवारी, कवि जगदीश नलिन, युवा निति के पूर्व सचिव सुनीश सरीन, पत्रकार श्रीकांत, अनंत कुमार सिंह, बिन्देश्वरी, अरूण नारायण, पत्रकार पुष्पराज, सुदामा प्रसाद, कवियत्री उर्मिला कौल, अरविन्द कुमार ने याद व विचार साझा किया। सम्मान समारोह व गोष्ठी में लखनऊ के कहानीकार सुभाष चंद्र कुशवाहा, रंगकर्मी राजेश कुमार, रांची के कहानीकार रणेन्द्र, आलोचक रविन्द्रनाथ राय, आलोचक खगेन्द्र ठाकुर, कवि चंद्रेश्वर, कथाकार नीरज सिंह, आलोचक रविभूषण, सुधीर सुमन, गीतकार नचिकेता, बलभद्र, शिवकुमार यादव ने भी विचार रखे। यहां रामधारी सिंह दिवाकर, अशोक कुमार सिंह, वाचस्पति, चंद्रेश्वर पांडे, उमाकांत, समेत कई साहित्यकार मौजूद थे।

अध्यक्षता खगेन्द्र ठाकुर, रविभूषण सिंह व नीरज सिंह ने की। संचालन जीतेन्द्र कुमार ने किया।

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना