Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

राजस्थानी भाषा को मान्यता से ही राजस्थान का विकास

 राजस्थानी गुजराती लोक साहित्य पर राष्ट्रिय सेमिनार का समापन

उदयपुर। राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग प्रदेश, देश व विदेश में जोर शोर से उठ रही है। भोजपुरी के साथ राजस्थानी को भी मान्यता मिलना तय है। उक्त विचार राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष देव कोठारी ने राजस्थान भाषा साहित्य व संस्कृति अकादमी, सोराष्ट्र युनिवरसिटी और डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के सयुक्त आयोजन में आयोजित राजस्थानी गुजराती लोक साहित्य की राष्ट्रिय संगोष्ठी में व्यक्त किये। डॉ कोठारी ने बताया की राजस्थानी में दो लाख शब्दों का शब्द कोष है तथा तीन लाख हस्त लिखित ग्रन्थ है।राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए राजनैतिक ईच्छा  शक्ति की कमी मूल कारण है।राजस्थानी की मान्यता से ही राजस्थान का विकास संभव है। कोठारी ने कहा की राजस्थानी लिपि के अध्ययन की माकूल व्यवस्था जरुरी है तभी प्राचीन साहित्य तथा इतिहास को बचाया जा सकता है।संत और लोक साहित्य पर राजस्थान में जो कार्य हुआ है उसे उजागर करने की जरुरत है।राजस्थानी में लेखन ,अध्ययन,अध्यापन ,शौध का स्टार हिंदी के बराबर है किन्तु राजस्थान में नोकरियो में राजस्थानी भाषा का ज्ञान आवश्यक होना चाहिए।

राजस्थान भाषा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्याम महर्षि ने कहा कि राजस्थान व गुजरात के सांस्कृतिक  संरक्षण हेतु दोनों ही अकादमियो को मिलकर कार्य करने की जरुरत है।महर्षि ने कहा की राजस्थान के विश्व विधालयो में एक राजस्थानी साहित्य,संस्कृति और भाषा का विभाग या चेयर  होना  चाहिए।

मुख्य अतिथि उत्तर गुजरात विश्व  विधालय के पूर्व कुलपति डॉ बलवंत जनि ने कहा की  प्राच्य विद्या विद मुनि जिन विजय ने साधुवेश में स्वतंत्रता,अहिंसा,भारतीयता का महत्वपूर्ण कार्य देश विदेश में किया है।भाषा,संस्कृति  के संरक्षण में खुद को समर्पित करना होता है।राष्ट्र संत मुरारी बापू ने राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए राजस्थान को शुभ सन्देश भेजा है।

झवेरचंद मेघानी लोक साहित्य संस्थान राजकोट के निदेशक डॉ अम्बादान रोहडिया ने कहा की राजस्थान और गुजरात की भाषा साहित्य और संस्कृति की विरासत साझा है  इस विरासत को बचने के साथ ही अगली पीढ़ी को इसे रूबरू करने का कार्य साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाओ की है।

डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय एस मेहता ने कहा कि राजस्थान व गुजरात की साहित्यिक शास्त्रीय  कविताये डिंगल व पिंगल है।बोलिया अलग अलग है किन्तु भाषाई शास्त्रीयता साहित्यिक और अति प्राचीन है।

 विशिष्ठ अतिथि डॉ ज्योति पुंज ने कहा कि वैश्वीकरण के वर्त्तमान दौर में हमारे परंपरागत ज्ञान को बचाए रखना और आने वाली पीढ़ी तक पहुचना बड़ी चुनोती है।  क्रांतिकारी प्रताप सिंह बारहट  और गोविन्द गुरु ने हमें साहित्य व संस्कृति की एक राह बताई है।

राजस्थानी भाषा साहित्य संसकृति अकादमी के सचिव प्रथ्वी राज रतनु ने  बताया  कि अकादमी  द्वाराहालिया दो वर्षो में  एक सो पुस्तको का प्रकाशन किया गया है।इस वर्ष राजस्थानी गुजराती अनुवाद कार्यशाला तथा राजस्थानी लिपि कार्यशाला भी प्रस्तावित है। समारोह का संयोजन शकुन्तला सरुपुरिया ने किया।

 डॉ आइदान सिंह बहती ने कहा की गाँधी जी को  नमक सत्याग्रह की प्रेरणा राजस्थान के पचपदरा के सेठ की क़ानूनी लड़ाई से मिली थी।राजस्थान के रामदेवजी ने दलित स्त्री स्वतंत्रता की लड़ाई पहले लड़ी थी।राजस्थान के लोक साहित्य में स्त्री सबलता के अनेकानेक स्थल है। डॉ.  किरण नहता, डॉ बलवंत जानी, डॉ हर्ष याग्निक, डॉ श्री कृष्ण जुगनू आदि ने भी पात्र वचन किया। समापन समारोह में राजेंद्र बारहट, शिव दान सिंह जोलावास, अनिल मेहता, मुस्ताक चंचल, आशा पण्डे ओझा सहिय्कार रवि पुरोहित, ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा अब्दुल अज़ीज़, हाजी सरदार मोहम्मद सहित  साहित्यकारो, गुजरात से आये साहित्यकारो  ने भाग लिया।

नन्द किशोर शर्मा 

सचिव 

डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट,उदयपुर द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति

 

 

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना