एमसीयू के जनसंचार विभाग में विभागीय सत्रारंभ कार्यक्रम का आयोजन
भोपाल/ मंजिल तक पहुंचने के लिए व्यक्ति जिन साधनों का उपयोग करता है, उनसे उसकी विश्वसनीयता कायम होती है। विश्वसनीयता पत्रकार की सबसे बड़ी पूंजी है। इसलिए पत्रकार ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मंजिल को प्राप्त करने के लिए नीतिगत साधनों का ही उपयोग करना चाहिए। ये विचार वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटेरिया ने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के सत्रारंभ कार्यक्रम में व्यक्त किए।
'पत्रकारिता एवं राजनीति' विषय पर श्री पटेरिया ने कहा कि राजनीतिक संवाददाता को राजनेताओं से खबरों के लिए भावनात्मक संबंध बनाने चाहिए लेकिन ये संबंध सिर्फ खबरों तक ही सीमित रहने चाहिए। उन्हें स्वयं को पॉवर जनरेटर नहीं समझना चाहिए। इस मौके पर इंडिया न्यूज की मप्र-छत्तीसगढ़ प्रमुख दीप्ति चौरसिया ने कहा कि आज सबसे तेज की होड़ में विश्वसनीयता कहीं पीछे छूट रही है, यह पत्रकारिता के सिद्धांत के खिलाफ है। टीवी पत्रकारिता बड़े स्तर पर समाज से संवाद करता है, इसलिए तथ्यों और कथ्यों को जांच-परखकर ही दिखाना चाहिए। 'जनसम्पर्क एवं अवसर' विषय पर मुख्यमंत्री के प्रेस अधिकारी डॉ. भूपेन्द्र कुमार गौतम ने कहा कि दुनिया का प्रत्येक जीव संचार करता है। समाज का ऐसा कोई क्षेत्र या संस्थान नहीं है, जहां जनसम्पर्क की जरूरत न हो। इसलिए इस क्षेत्र में करियर की अच्छी संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि अच्छा जनसम्पर्क कर्मी बनने का सबसे अच्छा मंत्र है कि आप जहां जाएं, वहीं के रंग में रंग जाएं।
घटनाओं को देखने का नजरिया बनाता है अच्छा पत्रकार :
'सांस्कृतिक पत्रकारिता' को समझाते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति ने बताया कि हमें घटनाओं, चीजों और लोगों को पूर्वाग्रह से हटकर देखना होता है। यदि पूर्वाग्रह साथ रहेंगे तो हमारी पत्रकारिता वास्तविकता नहीं दिखा सकेगी। दृष्टिकोण हमारी पत्रकारिता को प्रभावित करता है। इस मौके पर जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने कहा कि पत्रकारिता में 'सरल हिन्दी' के नाम पर भाषा के साथ खिलवाड़ नहीं बल्कि भाषा को खत्म किया जा रहा है। हमें भाषा की श्रेष्ठता की ओर जाना चाहिए, भाषा की निकृष्टता की ओर नहीं। एक दौर था जब अखबारों से लोग अपनी भाषा का संवर्धन करते थे, अखबार को शब्दकोश की तरह उपयोग करते थे।
समय का सदुपयोग ही समय प्रबंधन है
ख्यातिनाम लेखक डॉ. विजय अग्रवाल ने 'समय प्रबंधन' विषय पर कहा कि कोई भी व्यक्ति समय का प्रबंधन नहीं कर सकता लेकिन वह स्वयं का प्रबंधन कर ले तो समय का प्रबंधन स्वत: ही हो जाता है। दरअसल, समय का सदुपयोग ही समय का प्रबंधन है। उन्होंने कहा कि भारत का दर्शन दुनिया के सभी दर्शनों से श्रेष्ठ है। समय के विषय में हिन्दुस्तान में जो सोचा गया है, वैसा किसी देश में नहीं सोचा गया है।
पत्रकारिता कभी बाजार नहीं बन सकती
एबीपी न्यूज के वरिष्ठ प्रोड्यूसर रघुवीर शरण रिछारिया ने कहा कि यह कथन पूरी तरह सत्य नहीं है कि पत्रकारिता व्यवसाय हो गया है। पत्रकारिता ऐसी विधा है जो पूरी तरह बाजार न तो हुई है और न कभी होगी। इंडिया न्यूज के वरिष्ठ प्रोड्यूसर वैभववर्धन दुबे ने पत्रकारिता की पढ़ाई के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अक्सर यह कहा जाता है कि क्लास रूम की स्टडी, फील्ड में काम नहीं आती, जबकि आपका पढ़ा-लिखा हर मौके पर काम आता है। इस मौके पर सहारा समय के चैनल हैड रजनीकांत सिंह ने कहा कि पत्रकारिता एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोज नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया।
संचार ही तय करता है मनुष्य की भूमिका एवं स्थान : प्रो. कुठियाला
कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने संचार के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि संचार के कारण ही सामाजिक तानाबाना बनाता है, मनुष्य का समाज में स्थान तय होता है और उसकी भूमिकाएं भी निर्धारित होती हैं। उन्होंने बताया कि समाज में मनुष्य के स्थान का मूल आधार सामाजिक सरोकार और सामाजिक संबंध होता है। प्रो. कुठियाला ने बताया कि एक-एक सफलताओं का समूह आपके जीवन को सफल बनाता है लेकिन जीवन का अंतिम लक्ष्य सार्थकता होना चाहिए। जीवन सार्थक तब होगा जब वह समाज हित में होगा।
विभागीय सत्रारंभ के दूसरे दिन विद्यार्थियों को प्रोग्राम प्रोडक्शन की जानकारी ईटीवी के एसोसिएट फीचर धनंजय गुप्ता ने दी। टीवी रिपोर्टिंग के लिए जरूरी टिप्स आईबीएन-7 के मध्यप्रदेश के प्रमुख संवाददाता एवं ब्यूरो मनोज शर्मा ने दिए। जबकि 'व्यक्तित्व विकास' जीवन में किस तरह जरूरी है, यह प्रबंधन के प्राध्यापक अभिजीत वाजपेयी ने बताया।