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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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दुष्‍यंत कुमार की याद में बिजनौर फिल्‍म महोत्‍सव

‘अवाम का सिनेमा’ की सांस्‍कृतिक मुहिम

आम लोगों के बीच सिनेमा के माध्‍यम से बदलाव की चेतना को ले जाने की अपनी सांस्‍कृतिक मुहिम के क्रम में ‘अवाम का सिनेमा’ ने इस बार बिजनौर की ऐतिहासिक धरती को चुना है। यहां आगामी 4-5 मई को कवि दुष्‍यंत कुमार की स्‍मृति में बिजनौर फिल्‍म फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है जिसमें कुछ युवा फिल्‍मकारों की बेहतरीन फिल्‍मों का प्रदर्शन किया जाएगा।

हिंदी जगत के साथ बिजनौर का रिश्‍ता सबसे मज़बूती से जोड़ने का काम कवि और शायर दुष्‍यंत कुमार ने किया था। वे इसी जिले के राजपुर नवादा गांव में पैदा हुए थे। आज चाहे सिनेमा हो या आंदोलन, हर जगह कवि दुष्‍यंत कुमार की गज़लें उनकी मौत के तीन दशक बाद भी लोगों की ज़बान पर चढ़ी हुई मिलती हैं। यह वर्ष कवि दुष्‍यंत कुमार का अस्‍सीवां जन्‍मवर्ष है और अवाम का सिनेमा बिजनौर फिल्‍म फेस्टिवल को उनकी स्‍मृति में समर्पित कर के गौरवान्वित महसूस कर रहा है।

दुष्‍यंत की इंकलाबी ग़ज़लों की परंपरा को अगर हमारे समय में किसी ने भी आगे ले जाने का काम किया है, तो निर्विवाद रूप से उनमें बल्‍ली सिंह चीमा का नाम सबसे आगे आता है। ‘ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के’ नामक गीत आज पहाड़ से लेकर समुद्र तक देश में चल रहे जल, जंगल और ज़मीन के तमाम आंदोलनों का केंद्रीय प्रेरणा गीत बन चुका है। बल्‍ली दा के हाथों इस फिल्‍म महोत्‍सव का उद्घाटन अपने आप में दुष्‍यंत कुमार को एक श्रद्धांजलि होगी।

यह फिल्म उत्सव जिस दौर में हो रहा है, भारत के सत्ता तंत्र ने आम लोगों के सामने नई और कठिन चुनौतियां पेश कर रखी हैं। प्रतिरोध के स्वरों को या तो दबा दिया जा रहा है या फिर सत्ता उन्‍हें अपना गुलाम बना ले रही है। संस्‍कृति के मोर्चे पर हालत यह है कि कॉरपोरेट पूंजी और मुनाफे से चलने वाला मीडिया व सिनेमा जनता की चेतना को और कुंद किए दे रहा है। किसान, मजदूर, आम मेहनतकश के बीच चौतरफा पस्‍तहिम्‍मती का आलम है। अगले लोकसभा चुनाव के बाद आने वाले दिनों में देश की तस्‍वीर कैसी होने जा रही है, इसका सिर्फ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। ऐसे कठिन वक्‍त में दुष्‍यंत और बल्‍ली दा की कविताएं जोर-जुल्म से टक्कर में सडकों पर दो-दो हाथ करने का हौसला आम मेहनतकश को देती हैं।

दुष्‍यंत कहते हैं, ‘मेरी कोशिश है ‍कि ये सूरत बदलनी चाहिए’, लेकिन सूरत बदलने के लिए क्‍या ज़रूरी है उसका जवाब बल्‍ली दा ने अपनी एक मशहूर ग़ज़ल में दिया है- ‘तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो, आदमी के पक्ष में हो या फिर आदमखोर हो।’ बिजनौर फिल्‍म उत्‍सव का उद्देश्‍य एक ऐसे सांस्‍कृतिक विकल्‍प का निर्माण करना है जो आदमी के पक्ष में और आदमखोरों के खिलाफ खड़ा हो, जो सिर्फ हंगामा खड़ा करने के बजाय सड़क से लेकर संसद तक समूची सूरत को बदलने का संघर्ष करता हो। हमारी कोशिश होगी कि फिल्मों, डाक्यूमेंटरी, पोस्टर और कला के विभिन्न माध्यमों के जरिये मौजूदा ज्वलंत सवालों को समझा जाए।

‘अवाम का सिनेमा’ चार और पांच मई को बिजनौर के सभी जनपक्षीय जनसरोकारी लोगों को इस फिल्‍म फेस्टिवल में आमंत्रित करते हुए हर्ष का अनुभव करता है। हमारा विश्‍वास है कि बदलाव की कोई भी प्रक्रिया लोगों को साथ लेकर ही आगे बढ़ सकती है। हमें उम्‍मीद है कि बिजनौर के अमनपसंद लोग हमारे विश्‍वास को बनाए रखेंगे।

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना